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________________ 252525252595 denganza YSRSRSRS ちら सर्व लक्षणों सहित उत्तम हाथी जो श्वेत समझने योग्य ऊँचा बीच की वयस (अवस्था उमर) का स्थित होवे । राजितै: कलशैरतः शुद्धि यंत्रयुतं जलं. जलभृद्भिचंदने क्षौद संपर्क सुरभि कृतं ॥ ५० ॥ फिर वह शुद्धि यंत्र ऐसे कलशों से युक्त हो जिनमें चंदन के चूर्ण के संपर्क से सुगंधित किया हुआ जल हो । अष्टाभिरूधि रूठेने शानेन प्रमितैः शुभैः प्रजतैः, स्नान मंत्रेण स्नपयेत भूषयेदनु ॥ ५१ ॥ फिर आठों लोकपालों से अधिवेष्टित (घिरे हुए) इशानेंद्र को जाने हुए उत्तम और स्नान मंत्र को जप किये हुए जल से स्नान करावे और सजाये । शुद्धि मंत्र अंत लिखित साध्यरव्यं जांत पिंडं लिखेत क्रमात्, तं स्वरैरिधना लांत संपुटेन च वेष्टयेत् ॥ ५२ ॥ अन्दर साध्य के नाम को लिखकर उसके चारों तरफ क्रमशः जांत पिंड इम्ल्वर्यू १६ स्वर इद्ध (प्रकाशित ) लांत (घ) के संपुट से उसको वेष्टित करे । ततश्चामृत मंत्रेण मंडलेन च वारिटो:, एतदेव विलिखितं शुद्धी यंत्र मुदा हृतं ॥ ५३ ॥ ॐ अमृते अमृतोद्भवे अमृत वर्षाणि अमृत श्रावणे ॐ इवीं क्ष्वीं वं मं सर्वांग शुद्धिं कुरु कुरु स्वाहा | स्नान मंत्र फिर उसके चारों तरफ अमृत मंत्र लिखे और जल मंडल बनावे इसी यंत्र का नाम शुद्धि यंत्र है । सुरभि द्रव्य संमृष्ट प्रकीर्ण नव शालिके, देशे पद्य वरोपेते जलं मंगल दीपिकैः 1148 11 सुगंधित द्रव्यों से साफ किये हुए अनेक प्रकार की नयी वस्तुओं से, तथा पैर धोने के जल से युक्त जल और मंगल दीपक वाले स्थान में सर्वतः स्थापितैर्युक्त रत्न गर्भे शुभैर्घटैः, बीजपूर मुखै गंध सलिला पूरिता शो: PSP5PSPSSPP ८६. P/5959595959595 ॥ ५५ ॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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