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335015215051215125 विधानुशासन 050512SDISTRISOIN मंत्राधि देवता के पांच उपचार निम्नलिखित कहे गये हैं। आह्वानन स्थापन साक्षात्करण पूजन विसर्जन
मंत्रादि देवतानां देशे न्यत्र प्रतिष्टितायतः ना आह्वानं तत्प्रोक्तं मंत्रि भिरावाहनं नाम्नां
॥२॥ किसी दूसरे स्थान में ठहरे हुवे मंत्र के अधि देवताओं को मंत्र द्वारा बुलाने को आह्वाहन कहते हैं।
उचिताभिमते देशे गत्तासां स्थापनं मुदा क्रियते तत्प्रतिबिवाना या भवेत्प्रतिष्ठापनं तदिदं
॥३॥ उन देवताओं या उनके प्रतिबिम्ब को उचित स्थान में स्थापित करने को स्थापन कहते हैं।
साक्षात्करणं ता सां यन्म मंत्र शक्ति रूपाणां विहितं पूजा समये प्राहु स्तत सन्निधीकरणं
॥४॥ उन मंत्र की शक्ति वाले देवताओं का पूजन के समय में जो मंत्रों द्वारा साक्षात्करण किया जाता है। से समतलर या शिविगार करने में।
गंधोदक प्रभृतिभिःक्रियामाणं वस्तुभिर्यथा शास्त्रं
अभिषेचनादि ता सांयतत्स्यादर्चनं नामः ॥५॥ जो उनकी शास्त्रों के अनुसार अभिषेक पूर्वक जल चंदन आदि द्रव्यों से पूजा की जाती है उसे अर्चना या पूजन कहते हैं।
आहूतानां तासां स्वस्थान प्रायणादरा द्विहिता यातां बुधा विसर्जन मुपचारं पंचमं प्राहु:
॥६॥ उन बुलाये हुवे देवों को आदर पूर्वक अपने स्थान पर भेजने को पंडितों ने पाँचदाँ उपचार विसर्जन कहा है।
अहान्ने मंत्राणां मंते स्यादेहि एहि संवौषद तिष्ट द्वितीयंठ: द्वयं संयुक्तं स्थापने योज्यं
॥७॥ अंत में मंत्रो के आह्वाहन में एहि एहि संयोषट् और स्थापन में तिष्ट तिष्ट ठः ठः लगाने चाहिये।
मम सन्निहिता भव भव वषद एतद सन्निधीकतौ क्रियता अभ्यर्यनाविद्याने गंधादीन गृह गन्ह नमः ॥८॥
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