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. सन्निधिकरण में मम सन्निहितो भव भय वषट ऐसा कहे पूजन में गंधादीन गृह्न गृह्न नमः बोले ।
अंते भवे द्विस्टष्टौ स्व स्थानं गच्छ गच्छ जस्त्रि तयं इत्युपचारात् जनन विद्या फल भाक् भवेत् पुरुषः
॥ ९ ॥
ही
विसर्जन में स्वस्थानं गच्छ गच्छ जः जः जः लगाने चाहिये पुरुष 'उपचारों को जानता हुवा विद्याओं के फल का बागी हो सकता है।
यंत्रोपचार मंत्रानोक्ता मंत्रेषु तत्र कर्तव्याः
उपचाराः स्वैरेव प्रोक्तैः स्तद् वाक्य संयुतेर्विधिभिः
॥ १० ॥
जिन मंत्रों की विधि में उपचार मंत्र न दिये हो वहां उपरोक्त प्रकार से अपने वाक्य बनाकर विधि में प्रयोग करने चाहिये ।
आह्वानं पूरकेण स्यात् रेचकेन बिसर्जनं शेष कर्माणि योज्यानि कुंभकेन प्रयत्नतः
॥ ११ ॥
पूरक प्राणायाम से आह्वाहन करे रेचक से विसर्जन और शेष कर्मों की विधि कुभंक प्राणायाम से
करें ।
संख्यानुक्ताज्ञेया दशलक्षण्येक वर्ण मंत्राणां
विद्या जपेत् द्वि वर्णादीनामपि वृद्धि हानिं च
॥ १२ ॥
इन मंत्रो के जपने की संख्या यह है एक अक्षर वाले मंत्र की संख्या दस लाख है और दो वर्ण वालों की फिर कम और अधिक है। अथवा
सर्वेषा मपि मंत्रणाम
वचने जपादिषु
संख्या शतमष्टयेतरं संख्या सहस्रमष्टोत्तरं वदंति मुनीन्द्राः ॥ १३ ॥
आचार्यों ने सभी मंत्रो के जपने बोलने की संख्या एकसो आठ अथवा १००८ रखी है।
होमादिषु संख्या स्याद् दश भागा मूल मंत्र संख्यायाः अंगा देरपि संरख्या मंत्रस्य तथैव बौद्धव्या
॥ १४ ॥
होम आदि की संख्या मूल मंत्र के जप का दसवाँ भाग है और मंत्र के अंगों की जप की संख्या भी दसवाँ भाग जाननी चाहिये ।
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