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________________ CISIOINDI52550505 विधानुशासन 985101512551315015215 ॐ हीं सकलशते पूजिताष्ट महाप्राति हार्य विभवरलंकत द्वादश गण परिवेष्टित सर्वानंत चतुष्टये सर्वज्ञ भट्टारक तव पाद युगलं मम मानस वंसति स्थितं करोमि स्वाहा। ध्यान मंत्रः उही सभी एक सोइंद्रों से पूजित अष्ट महाप्राति हार्य के ऐश्वर्य से अलंकृत बारह गणों से परिवेष्टित अनंत चतुष्टय युक्त महारक में आपके दोनों चरणों को अपने मन में स्थापित करता हूँ।इस ध्यान मंत्र का अर्थ है। इत्येवं परत्मात्वेनात्मानं प्यायतः सतः प्रतिक्षणं स्यात्प्राश्वद्ध कर्मणं निर्जरां परा ॥१४॥ इस प्रकार अपने को परमात्मा रूप में ध्यान करने वाले सज्जन के पिछले बंधे हुये कर्मों की निर्जरा प्रत्येक क्षण में होती रहती है। विनौयाः प्रलयं यांति व्याधयो नाशमाप्रयुः विषं निर्विषतां याति स्थावरं जंगमं तथा ॥१५॥ दूरादेव प्रणश्यति शाकिनी भूत पन्नगाः लोक द्वय हितं प्याना देत स्मात्नां परं परं ॥१६॥ उसके विघ्न के समूह नष्ट हो जाते व्याधियाँ नष्ट हो जाती है। स्थावर जंगम दोनों प्रकार के विष निर्विषता को प्राप्त होते हैं। उससे शाकिनी भूत और पन्नग दूर से ही भाग जाते हैं। इस ध्यान से अधिक हित कारी ध्यान तीन लोक में कोई भी नहीं है। इत्थं संकीर्तितामेनां विद्याय सकली क्रियां पंचोपचार विधिनायजेन मंत्राधिदेवताः ॥१७॥ इस प्रकार वर्णन की हुई इस सकली करण की क्रिया को करके पंचोपचार विधि से मंत्राधि देवियों की पूजन करे। सकली करणं येषु मंत्रष्वाहत्य नोधितं तेष्वेषां संविधातव्यामंत्रिभिः सकली कृतिः ॥१८॥ जिन मंत्रों में सकली करण की विधि न हो उनमें इन मंत्रों सकली करण की क्रिया कर लेनी चाहिये। पंचा ह्वान स्थापन साक्षात् करणार्चना विसर्गाः स्युः मंत्राधि देवतानामुपचाराः कीर्तिता स्तज्ञैः ॥१॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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