________________
95969593PSPX विद्यानुशासन
こちらに
एतेन बाणा लोष्ठ प्रभृतिभिरंभि मंत्रितै रिपोः सेनां दिध्येत, पताकिनी सांगः सहसैव निवारिता भवति
॥ ९ ॥
इस मंत्र से मंत्रित किये हुए बाण तथा ढ़ेला आदि को शत्रु की सेना पर छोडने से वह सेना अचानक ही भाग जाती है।
ध्यात्वा ज्वाला रूपं सलिले वितरेदनेन वार स्त्रीन्, माग्गों रिपुवाहिन्या आयातिन सा यथा तेन्
॥ १० ॥
मार्ग में अग्नि के रूप का ध्यान करके इस मंत्र से जल को तीन बार अभिमंत्रित करके बिखेर दे तो शत्रु की सेना इसप्रकार नहीं आ सकती ।
व्योषापामार्ग रजसा समुपेतं जप्तमुष्णा जलम्, अमुना युद्धे त्रिगे प्रदर्व्या विकरेन्नरेद्रयोः सेनां
॥ ११ ॥
व्योष (सोंठ मिरच पीपल) और अपामार्ग (चिरचिटा ) के चूर्ण से युक्त गरम पानी को इसमंत्र से युद्ध में मंत्रित करके तिराहे पर राजा की सेना के मार्ग में बिखेर दे।
श्वेतेन किसलया दीन्यं गान्ये कांश्वर भू रूहस्य,
जपित्वा साध्यांग धियां जुहुया देह मरे स्तत्र तत्र भवति रूजांगे ॥ १२ ॥ एक वृक्ष के कोंपल आदि एक अंगो पर साध्य के अंग का बुद्धि से श्वेत ध्यान करता हुआ यदि हवन करे तो शत्रु के उसी अंग में रोग उत्पन्न हो जाता है।
सीमानं ग्रामादे देशषस्यो दिश्य वृष्टि रिहमा भूत, इत्येतत संजप्तां लेखां कुय्यांन्न तंत्र वृष्टिः स्यात्
॥ १३ ॥
ग्राम देश आदि की सीमा का उद्देश्य करके यदि यह विचार कर मंत्र जपे कि यहाँ तक वृष्टि न होवे तो वहाँ तक दृष्टि नहीं होती है।
मंत्रो वासह यक्षाय ठेठेत्येष प्रसिद्धयति, लक्ष प्रजाप्पाद वशोस्य यक्षः स्यादधि देवता
॥ १४ ॥
वासह यक्षाय ठः ठः यह मंत्र एक लाख जप से सिद्ध होता है इसका वासह यक्ष अधिष्ठाता देवता है।
अष्ट सुदलेषु मंत्री भूमंडल मध्यगस्य, प्रागद्या लिखितोयं द्विषतः सं स्तंभयेत् ध्वजिनी
॥ १५ ॥
'शत्रु
यदि इस मंत्र को आठ दलों के अन्दर पृथ्वी मंडल में प्रातःकाल के समय लिखे तो का स्तंभन होता है ।
e5e59695969595 पर 95959595959595
की सेना