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________________ 959595959 विधानुशासन 95959595955 Σ +M X रह pu ति शत्रु सेन स्तंभय २ फट् 7 0505050 鬼 खा 税 7 x + M x চ ली युतेन्दु दर्भितमभिधानं लिखितं पचे ख्यातं, द्विषतो वाहिन्यो पोषितस्य सं स्तंभनं कुरुते ॥ १६ ॥ इन्दु (ठ) सहित ले और ली के अंदर का नाम को एक वस्त्र पर लिखने से यह मंत्र शत्रु की सेना का स्तंभन करता है । रिपु नामान्वितं मतं मलवर यंकार संयुतं ठांतं, तद्वाह्यं भूमि पुरं त्रिशूलं भूतोग्र मृगवेष्टयं ॥ १७ ॥ रिपु नामान्वितं शोनमान्वितं कं भांत यकारं मलवरयूंकार संयुतं मश्च लव वश्व रक्ष यूंकार व मलवरयूंकाराः तैः संयुतं संयुक्तं कं टांत ठकारो एवं उम्लवयूँ मिति बीजं वकार वहिः तद्वाह्ये भूमि पुरं तत ठ पिडं बाह्ये पृथ्वी मंडलं त्रिशूल भूतोग मृग वेष्टयां तत् पृथ्वी मंडल बाह्ये त्रिशूलानेक भूतक्रूर मृग जात्यैः परीतं ॥ प्रतिरूप हस्त खडगै निहन्य मानारि रूप परिवेष्टयं, शत्रोर्मामांतरितं समंततो चैष्टियेत्पिंडे : ॥ १८ ॥ 6P/15443P/596959595959
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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