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________________ CHOISO15105510851015 विधानुशासन 25TOTSTRASTRISTRIST95 इसी मंत्र को तारा वृक्ष (चीड़) की दो तरितयों पर लिख और उसे दो साधकों के आगे गाड कर रखे तो कुन (पहाड) की तरह स्तंभन होता है। ॐहीं पाश्वाधिक यक्ष दिव्य रूप रोम हर्षण एहि एहि आं क्रों नमः ॥ पार्श्व यक्षाराधन विधान मंत्रोयं दश लक्ष जाटप्प होमात् प्रत्यक्षो भयति पार्थ यक्षोसी, न्यग्रोध मूल वाशी श्यामांगः त्रिनयनो नूनं संस्कृत टीका -असौ पार्श्वनामधेय यक्षः न्यग्रोध मूलवासी वट वृक्ष मूल निवासी किं विशिष्ट स्यामांग: श्यामवर्णं पुनः कथं भूत: त्रिनयन: त्रिनेत्र नूनं निश्चितं ॥ निज स्टोन्याया मटा समुस्थितैः वैरि लोकमग्रस्थं, विमुखी करोति राक्षः संग्रामे निमिष मात्रेण ॥६॥ संस्कृत टीका-निज सैन्यै स्वकीय सैन्यैः कथं भूतैः मायामय समुस्थितैः ह्रीं कार मय कृत प्राकार सम्यगु स्थितैः वैरि लोकं शत्रु सेना समूहं कथं भूतं अग्रस्थं स्वकीय सैन्य पुरस्थितं विमुखी करोति परान्मुखी करोति कोसौ यक्षः पार्श्वयक्षः क्व संग्रामे रणरंग भूमौ कथं निमिष मात्रेण क्षण मात्रेण ।। यह पार्श्व यक्ष मंत्र कहा जाता है | यह बड़ की जड़ में रहने वाला पार्श्वयक्षा दस लाख जप से प्रत्यक्ष होता है । श्याम शरीर वाला और तीन नेत्र याला है। यह यक्ष अपनी माया से बनाई हुई सेना से आगे खड़ी हुई शत्रुओं की सेना को युद्ध में पल मात्र में भगा देता है। एषोस्थितो हुल हुलु उद्धरीमा भयंकरः तमहं समयिष्यामि संकना सलिलेन च. यत्रो स्थितोहुलहुल स्तव प्रतिगच्छता हुलुहल स्ताम नेत्राय ठ:: ॥७॥ रूद्राधि देवता मंत्र एष लक्ष प्रजाप्पतः आस्कंदति, नरेंद्राणां सिद्धिं बहुफल प्रदः हुल हुल ताम्र नेत्राय ठठः ॥८॥ यह रूद्राधि देवता का मंत्र है एक लाख जप से सिद्ध होकर नरेन्द्रों को अर्थात् उत्तम मनुष्यों को बहुत फल देने वाली सिद्धि होती है। C505051015555PISIS ८५१PIRICISTRISTRISTD35103505
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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