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________________ PSPSPSPSPSPSY विधानुशासन 9595959519695 लिखे चक्रं व्रत त्रय विभूषितं उष्ट्री मंत्र लिवेदवाह्ये यम श्लोको च मध्यतः ॐ ह्रीं उष्ट्री दष्ट्रानन हुं फट उष्ट्री मंत्र मिमं जाप्प दस सहस्त्र सरव्ययो मध्वाज्युक्तै रक्त पुष्पै सहस्त्रं होमयेत्ततः तत सिद्धो भवेन्मंत्रो यथेप्सित फल प्रद यस्य प्रभाव मात्रेण शत्रवो याति संक्षयं इमं यम श्लोकं ३२००० सहस्त्राणि जपेत घृत मधु रक्तपुष्पै सहस्त्र मेकं होमयेत् ततः सिद्धो भवति मनसेप्स्तिानि कार्याणि करोति अथ स्तंभं प्रवक्ष्यामि मंत्र यंत्रादि कम्र्म्मभिः, चोर सेना स्त्र शत्रु के जिव्हाादि व्याधि गोचरः ॥ १ ॥ अब चोर, सेना, शस्त्र, जिव्हा तथा व्याधियाँ तथा ग्रहों आदि को स्तंभन करने के लिए दिव्य औषधियाँ मंत्र और यंत्र आदि का वर्णन किया जावेगा। प्रणवादि धनु द्वितयं महाधणुः स्वर्ण वर्ण गगनांतः, मंत्र कुरुते वर्त्मनि सं जपतश्चोर दृग्वंध ॥ २ ॥ मंत्रोद्धार - ॐ धणु धणु महा धणु धणु स्वाहा ॥ आदि में प्रणव ॐ फिर दो बार धणु धणु फिर महाधणु धणु फिर स्वर्ण वर्ण गगनं (स्वाहा ) सहित मंत्र को वर्त्मन अर्थात् मार्ग में जपने से चोर की आँखे बंध हो जाती हैं। दश शत सिद्धेनाभि मंत्रिता, दुर्गा मनुना अमुना क्षिप्ता मध्ये दिक्षु च नव रूंध्युः शर्कराश्रोरान् ॥ ३ ॥ मंत्रोद्वार गोथि मोथि मोटि मेव उक्के मट्टे चट्टे घोर घरट्टे घेले मेलेये पथि माटाले जंभे स्तंभिर्य मोहे स्वाहा ॥ इस दुर्गा मंत्र को एक हजार जप से सिद्ध करके इससे मंत्रित की हुई शक्कर को दिशाओं में फेंकने से वह चोरों को रोकता है। तारात फलक युगे मंत्रममुं न्यस्य साधकयोः, अग्रे निरखन्ये सी मस्तदैव यस्यात् कुछ स्तंभैः やちもちですたちにちにちにちにちにちらです ॥ ४ ॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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