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CASTO15251015015125 विद्याबुशासन XSTOSTERSIRISTOT5205 बदसूरत स्त्री की भग में सरजस (ऋतु दिनों ) में सात दिन तक रखी हुयी सरसों पिसी हुई से द्वेष हो जाता है।
काकोलूक गरूत सप्र्पत्वक सम्पारि छदैः कत:,
चूर्णो विद्वेषमाधत्ते शत्रोमूनि समर्पितः ॥२२॥ कौवे और रलू के परख सर्प की कांबली और सरिषद मोर पंख) के बने हुए चूर्ण को शत्रु के सिर पर डालने से द्वेष होता है।
दीग्र्यकं धर दंतेन निंबेन राजिभिः भूतैः संभूतैः,
मिश्रितश्चूर्णः स्यात् द्वेषाय शिरोप्तिः ॥२३॥ दीर्घ कंघा दंत (बड़े हाथी दांत ) नीम राई और भूत (लिसोड़ेया बहेड़ा) को मिलाकर बनाये हुए चूर्ण को सिर पर डालने से द्वेष हो जाता है।
वशया ज्वलिता दीपात् द्विपस्य महिषस्य च, आत्त संजनमसूतं द्वि द्वेषाय प्रजायते
॥२४॥ हयस्य (घोड़े) या द्विप (हाथी) और भैंस की चर्बी (वसा) से जले हुए दीपक के बने हुए अंजन को आंजने से द्वेष हो जाता है।
हरा महिष मूत्रत्सिका लक्तक वह बार भाविता बत्तिः,
ज्वलिता महिषी वसया विद्वेष कृदजनं जनयेत् ॥२५॥ घोड़े और भैंसके मूत्रसे अलक्तक (म्हावर लाख) की बहुत बार भावना दी हुई (भीगी हुई) बत्ती को भैंस की वसा (चर्ची) में दीपक जलाने से और अंजन (काजल) बनाकर लगाने से विद्वेषण करताहै।
भुजंगत्वक भुजंगारि पतत्राभ्यां प्रवर्तितः, धूपः सं स्पर्शमात्रेण विद्वेषं जनयेत् भंशं
।। २६॥ सर्प की कांचली और भुजंग का शत्रु (भोर) के पंखों की दी हुई धूप को छूनेसे ही विद्वेष हो जाताहै।
चूडाभ्यां समुपाताभ्यां मयूरात् कुकुंटादपि, प्रवचनेन यूपेन स्पृष्टो द्वेष्टयालि लोलनः
॥ २७॥ मोर और मुर्गे की चोटी की धूप को छूने से ही विद्वेष हो जाता है।
काकोलूक छदोद्भूतो धूपः सम्यक प्रयोजितः, यस्यांश संस्पर्शत सद्य स्तं द्वेष्टि निरिवलो जनः ॥ २८॥
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