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5751 विधानुशासन 9595959595
तत् शराव संपुट निहितः सु स्निग्धयो योन्नति, मध्ये प्रेत वजे तन्निरात तां मा पादये च द्वेषं
॥ १५॥
उसको दो सरावों के संपुटों के सम्पुट के अन्दर रखकर श्मशान में गौड़ने से दो घनिष्ट मित्रों में भी शत्रुता हो जाती है।
विलिखितमिदं शिलायां ताल शिलायैम्महा शिलाद्यः,
क्रांतां यंत्र पीतैः पुष्पैः प्रपूजितं स्वेष्ट रोध करं ॥ १६ ॥
इस यंत्र को हड़ताल मेनसिल आदि से शिला के ऊपर लिखे हुए को रखकर दूसरी महाशिला के नीचे दबाकर पीले पुष्पों से पूजन करने से भी विद्वेषण होता है।
लिरिख्यतेप्यति वराणां रुधिरेणाभिधानयोः, स्निग्धयोन्निब पत्रैतौ पठन द्वेष्टि परस्परं
॥ १७ ॥
आपस में अत्यंत बैर करने वालों के रुधिर से नीम के पत्ते पर दो घनिष्ट मित्रों का नाम लिखने से उसको पढ़ने से उनकी परस्पर में शत्रुता हो जाती है।
मंत्री नासुरीत्येष नाम्जा ताल दले रिपोः, लिख्यते यस्य काकानां निवहेतु स खादयते
॥ १८ ॥
इस आसुरी नाम वाले मंत्र को ताड़ के पत्ते पर जिस शत्रु का नाम लिखा जावे (अथवा कौवे के अंडे के रस से ) उसे कौवों का समूह खा जाता है ।
काकोलूत पतत्राणियन्नामो देश पूर्वकं हूयंते, स्निग्धयो: प्रीति विघटेत् तयोः क्षणात्
॥ १९ ॥
कौवे और उ पक्षियों को जिनका नाम लेकर पुकारते हैं उन दोनों की मित्रता उसी क्षण टूट जाती
है ।
अश्वत केतक रजः समुद्र फल मज्ज चूर्ण समुपेतं, उपरिविकीर्ण स्वपतोंद पत्योर्ज्जनयति द्वेषं
॥ २० ॥
काली केतकी के चूर्ण और समुद्रफल की मीगी के चूर्ण को जिस दम्पत्ति के ऊपर सोते हुए पर डाला जाता है उन दोनों में द्वेष हो जाता है
दुर्भगायाः भगे सप्तदिनं सरजसि स्थितैः, पिष्टै सिद्धार्थक द्वेषो जनन्या अपि जायते
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॥ २१ ॥