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________________ CTERI5015TRISTOTSIDE विधानुशासन MSRTERSISTEROTICIST नाम उभयोः प्रतिकति हृदये भूज्जें संलिख्य तुय वग्गति, क्षिप्ते स्थाद् विद्वेषः प्रेतालये भूमि मध्यगते ॥१०॥ दोनों की मूर्तियों को भोजपत्र पर लिखकर उनके हृदय में चौथे वर्ग के अंतिम अक्षर (न) के अन्दर नाम को लिखकर श्मशान में गाडने से विद्वेषण होता है। यमराज सदोमेय यमेदो रणयोदय, यदयोनि सुरक्षेय राक्षे रक्ष निरामय मृत मुख निहित पट्टेवा प्रसूत चांडालिकां बरे. चापि भूत द्रुम पत्राभो निंब दलाभश्चितां गारैः ॥१२॥ मृतक के मुख पर रखे हुए वस्त्र अथवा प्रसव की हुई चांडाली के वस्त्र पर भूत द्रुम (लिसोडे या बहेडा) के पत्ते और नीम के पत्तों के रस से और चिता के अंगारों (कोयले) से चक्रे तुरंगम अरो महिष शिरश्नांतरा कते मंत्रि विधिना, ऽनुष्टप चक्रे श्लोके यदुक्तं मनुं विलिरवेत् ॥१३॥ घोड़े और भैंस के सिर-मुँह के बाल से ऊपर लिने हुए अक्षरों से मंत्री विधिपूर्वक चक्र में अक्षर लिखे। त चक्र मध्ये कोष्ठ स्थित मांते साध्ययो लिस्वेत, आरव्ये यमराज चक्रमे तदयंत्र मनर्थक हेतुः स्यात् ||१४ ॥ उसको चक्र के बीच के कोठे में लिखकर अंत में दोनों साध्यों के नाम लिखे यह यमराज चक्र यंत्र अनर्थ को करने याला कारण होता है।
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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