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________________ SSIRIDIOSIS5I0505 विद्यानुशासन 2050HRISIRIDIOSDIST भूर्मुटिके मुर्मुटिके घोरे विद्वेषणी विद्वेष कारिणी घोरा धोरयो रमुकयोः काकोल कादि वत्परस्पर द्वेषं कूरू॥ उक्तं च न्यस्याऽहित्वक चिता भूति प्वांक्ष पक्षा, शिते पटे पक्त तंतु वृता शो फाटा गहेपिता ।१७। यह मंत्र पढ़कर सर्प की कांचली, चिता की भस्म और कृष्ण पक्ष में पहने हुए दो वस्त्रों को और कौवे के पंखों को लाल धागे से लपेट कर शत्रु के घर में रखने से उसका उच्चाटन होता है। चिता भस्म मनुष्यास्थि ब्रह्म डंडी च कुर्वते, गेह मध्ये निरवातानि मासादुच्चाटनं रिपो ॥१८॥ चिता की भरम मनुष्य की हल्ली और ब्रह्म इंडी() को घर में गाड़ देने से शत्रु का एक मास में उच्चाटन हो जाता है। नरास्थि शंकुना द्वारि निहितेन भवेद गहं, शून्या मूर्दाभुजंगस्य सराशभररेण वा ॥१९॥ मनुष्य की हड्डी की कील अथया गधे के खुर द्वार में गाड़ देने से घर में से सर्पो का उच्चाटन हो जाता है अर्थात् घर सर्पो से खाली हो जाता है। नरास्थि सर्षप ध्वांक्ष पत्तत्राणि गहे रिपोः, जिरवातान्य चिरेणैव द्वरोच्चाटं वितन्वेत ॥२०॥ मनुष्य की हड्डी सरसौं कौवे के पंख को शत्रु के घर में गाड़ने से अचिरेण ( जल्दी ही) उद्याटन होता है। उष्ट्रास्थि क्रोडविट सीरी शव केशैर्ष विद्रिपो:, गह द्वार निहितै स्सप्त दिनादुच्चाटनं पर ॥२१॥ ऊंट की हड्डी क्रोड विट (सूअर की विष्टा) सीरी() शव केशे (मृतक शरीर के बाल) शत्रु के घर के द्वार में रख देने से उसका सात दिन में उच्चाटन हो जाता है। द्विषोश्च खुर रंधस्थौश्व जिव्हा सर्प मस्तकौ, उच्चाटनारा सप्ताहां निरवातो द्वारि वेश्मन : ॥ २२॥ कीलो निरवातः पद पंक्ति मध्ये कारस्करा नो कुह काष्ट जन्मा, उच्चाटनं दाग्विद धात्यरातव्याधिंच घोराम चिराद्भिद्यते ॥ २३ ॥ SSIRISEXSTD359505051८४२P/5050505125T0STORY
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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