________________
SSIPSCI5015DIDIO विधानुशासन 250ISTRIECISIOSSIOTES दिग्गत (घ) सृष्टि (स) यमांत (व) स्थित (यः) फलय () के बीच में नाम को लिखकर उसके चारों तरफ बहेड़ा की तख्ती पर खड़िया से बायु मंडल लिखे।
उन्मज्य तं गृहीत्वा चूर्ण मरातेर्विनिक्षेपेन्मूद्रनि, स विदध्यादुच्चाटं तस्टायमेव काले
१ फिर उस यंत्र को मिटाकर उसके चूर्ण को लेकर शत्रु के सिर पर डाले तो उसका शीघ्र ही उधाचन होता है।
तद्भूर्ज पटे लिरिवत्या यंत्रं धतुर रस समेतेन, अंगारेण पुन स्तप्तः कृष्णेन वेष्टय सूत्रेण
॥१२॥ इस यंत्र को धतूर के रस से भोजपत्र पर लिखकर अग्नि पर तपाने से पहले काले धागे से लपेटे
काकस्या स्थैन्यस्टा प्रछन्नं तं विसर्जयेत् शिवरे शत्रों:,
स सदाया सेनाप्रति गच्छेत सद्यः एवभयात् ॥१३॥ फिर उसे बिना किसी जाने हुए गुप्त भय रूप से यदि शत्रु के शिबिर में डाल दे वह शीघ्र ही भय से डरकर सेना को लेकर चला जाता है।
यस्य नाम्ना गहे प्रेतन राघया कर्षण रह:,
रज्जु निधीयते गेहे मध्ये निरवाता: मासादुच्चाटनं रिपौ ॥ १४ ॥ जिसके नाम को घर में मरे हुए मनुष्य की टांग में बांधकर एकांत में खींची हुई रस्सी उसके घर में गाड़कर रखी जाती है, उस शत्रु का एक मास में उच्चाटन हो जाता है।
हेम प्रकत सरावे गोपिताक्ताय भागारौक स्मिन्,
द्विज पक्षणा न्यत्रामपियताग्रेण तद्वयं निपनयेत् ॥१५॥ दो सकोरे लेकर गुप्त रूप से उनमें से एक में धतूरे का भाग रखकर और दूसरे में पक्षी का पंख रखकर शत्रु के लिये गाड़ देते।
नद्यास्तीरे द्वितटो विद्वेषः स्निग्धयोर्महान भवति,
ततीर स्व गता वपि नतयोः स्यात संग तिर्जतु ||१६॥ यदि उन दोनों को नदी के दोनों किनारों पर गाड़े तो अत्यंत प्रेमी मित्रों में भी महान विद्वेष हो जाता है। उन सरावों को उन किनारों से निकाल लेने पर भी उनमें कभी मेल नहीं होता है। DECISIOIROIDRISTRITIS८४१0/5050505ISTRISEXSI