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________________ eMPSPSPSPSPSX विधानुशासन 9595952959 वायव्य मंडलस्थं प्रेतमशि कणक सहित निव्यासः, धरकारांत: साध्यं विलिख्ये दुच्चाटनी कुरुते 11211 यदि वायुमंडल के बीच में श्मशान की राख की स्याही और धतूरे के रस को प्रकार के अदंर साध्य का नाम लिखे तो यह मंत्र उसका उच्चाटन करता है। सांतं श्मशान वस्त्रे वह्नि अनिल पुरस्थं मालिरवेन्नाम्ना, वद्धं तत् वृक्षाग्रे स्व स्थानावच्च यात्य सौ शीघ्रं ॥९॥ श्मशान के कपड़े पर नाम के बाहर सान्त (है) और उसके बाहर अग्नि मंडल और वायु मंडल बनावे और उसको वृक्ष के अग्रभाग में बांधने से वह शीघ्र ही साध्य का उच्चाटन करता है। Я S दिग्गत सृष्टि यमांतः स्थित फलय विदर्भितं, नाम वायु ग्रहं वैभीतकैः खटिकया फलके संलिख्य 3 रं रं रं ₹ ₹ 解 : स्वा स्वा प्र 233 Assta JAN d स्वा नाम ॥ १० ॥ O5P5PSD 959595 ८४. PSP/5959695956
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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