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________________ SSIODISTRISTOTSIRST विधानुशासन 50150150155ODI के सहदेवी कुमारिका आदि के पन्द्रह घड़े, सब मुँह तक सुगंधित जल से भरके हुए और अभिषेक के वास्ते गंधोदक के लिये सात घडे रखे। प्रथम दश दिक्पाल रूपर पूजनं यथा विधि . चैत्य ब्रह्म प्रतिमा पूजनं , यक्ष दक्षिणी पूजनं प्रतिमानां तीर्थकराणां पूजनं ॥१३९ ।। पश्चात् तेषां स्वपमं पूजनं पूजनं संकल्प युक्तं यता विधि पूर्वमान्ह्वा, पश्चात् विजर्सन कर्तव्यं योगै रेचक पूरकादिभिः ॥१४०॥ पहले दस दिक्पालों का पूजन करके, विधिपूर्वक चैत्यालय में ब्रह्मा की प्रतिमा का पूजन करे, फिर यक्ष और यक्षिणी का पूजन करे, फिर तीर्थंकरों का प्रतिमाओं का पूजन करे- उनका अभिषेक और पूजन करने से पहले विधिपूर्वक संकल्प करे, फिर पहले आह्वान न पूरक से करके रेचक के योगों से विसर्जन करे। पश्चात यथा विधि अंकुरा रोपण वृहत शांतिक पूजन पुण्याह वा चनानि शांति ग्रह होम पूजनानि शांति धाराधतानि सर्वाणि कर्तव्यानि यथा विधि: एतद विधानं महामहस्य समाप्त ॥१४१॥ इसके पश्चात विधिपूर्वक अंकुरारोपण विधान बृहत शांतिक पूजन विधान पुण्याह याचन ग्रहों की शांति विधान आदि हवन और पूजन आदि को शांतिधारा के अंत तक सब विधान विधिपूर्वक करे। इस तरह से महामह का विधान समाप्त हुआ। अत्रतु संकोटन कथितं त्रिवर्णाचारस्य दंडकोयं वृहदवर्णनं, विस्तारेण पूजा सार नाम्रि जिन संहितायां जिन सेन कथिते ।। १४२ ।। महामह वर्णनं महद दृष्टव्यं यहाँ पर संक्षेप से इसका वर्णन किया गया है इसका विस्तृत विवरण त्रिवर्णाचार के दंडक और जिनसेन स्थामी की बनाई हुयी पूजा सार समुच्चय नाम की जिन संहिता के महामह के वर्णन में देखना चाहिये।
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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