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CASIOISTRISTRIBRI505 विधानुशासन ISRIDDISTRISIRIDIN
मारण प्रतिकार की सामान्य विधि
यदगेहे हननाय वैरि निहितं मंत्रादितं कौशलात्, भात्वाद् धत्य विसा पंडभिरयो गव्यै हिं मार्जयेत् ॥१४३॥
सिंचेत् स्नान जलै जिनस्य समिन स्तत्रानोत्पावनान,
कुर्यात् शांतिभिधान होममपि तत व्यर्थं भवेन्मारणं ॥१४४ ।। शत्रु ने मारने के लिये घर में जो कुछ मंत्र आदि धरा हो उनको चतुरता से उखाड़कर टुकड़े टुकड़े करके, गोवर आदि से घर को घोवे लीपे । तथा घर को जिनेन्द्र भगवान के अभिषेक के गंधोदक से सींचे घर में पवित्र मुनिराजों को लावे तथा शांति विधान और होम भी करे ऐसा करने से मारण कर्म व्यर्थ हो जाता है।
मृति प्रतिकार विधानमेतत् जनान् जनं द्यो वति मृत्यु वकतात,
सो वा प्यान्जिर्जित जन्म प्रमानिया सर्वसुगकाशाम !! १४ !! इसप्रकार जो पुरुष इस मारण प्रतिकार विधान को जानता हुआ पुरुष को मृत्यु के मुख से बचाता है वह जन्म और मृत्यु को जीतकर सब सुखों के एक मात्र धाम मोक्ष को प्राप्त करता है।
वद्य प्रतिकार विधि प्रपंचो निरूपितो संयुते सतियोत्रमेव.
कृत्वा क्षुद्रेषु शेषेशु च मंत्रि मुख्यो रक्षेन्नरा स्तत्प्रभावादनात् ||१४६ ।। इस प्रकार यहाँ पर मारण के प्रतिकार की विधि का वर्णन एक स्थान में किया गया है । उत्तम मंत्री को चाहिये कि वह शेष छोटे मोटे उसी से होने वाले अनर्थों से भी पुरुषों की रक्षा करे।
इति मारण प्रतिकार विधानं षोडशमो समुदेशः
अथोच्चाटन संज्ञस्व विधानं क्षर कर्मणः, व्यावर्णाते यथाचार्यो रूपदिष्टं पुरातनैः
॥१॥ अब उच्चाटन नाम वाले क्षुद्र कर्म के विधान का वर्णन प्राचीन आचार्यों के उपदेश के अनुसार किया जाता है। काकी काकरूते काक पिंडा पहारिणी किलि-किलि अमुकस्टा हृदयं वंद्य वंद्य गृह्य गच्छ ठःठः ॥ ಥಳಥಳಥಳST (3429ಥಳಥಳಥಳ