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________________ PSPSSPPSS विधानुशासन 2595959529505 स्नापितस्य पूर्व विधिना लिप्तस्य सुगंधिभि शुभै द्रव्यैः, कृत भूषणा वपुः संदद्यतः सर्वैरलंकारैः ॥ १११ ॥ फिर पूर्व विधि से स्नान करके सुगंधित द्रव्य अंग में लगाकर शरीर में आभूषण धारण हुआ सब अलंकारों को धारण करे । सकली कृतस्य पूर्वेहनि रक्षामंत्रविहितरक्षस्य, स्त्री सेवात्यक्त वत: परेन्हि कृत दंत धवनस्टा ॥ ११२ ॥ पहले दिन सकलीकरण करके रक्षा मंत्र से अपनी रक्षा करके स्त्री के संसर्ग से दूर रहकर अर्थात् ब्रह्मचर्य रखता हुआ दूसरे दिन दंत धावन करके स्त्रापितास्या मृत मंत्रेणांतः स्थित शुद्धि मंत्र कलश जलैः, पुष्पांजलिं कृत वतः पठतो विजयान्वं मंत्र ॥ ११३ ॥ फिर कलश के अंदर के जल को अमृत आदि मंत्रों से शुद्ध करके तथा अमृत मंत्र से स्नान करके विजयादेवी के आह्वानन के मंत्रों को पढ़कर पुष्पांजलि देवें । सत्पात्रेभ्यो दानं दत्त वत सादरं यथा शक्ति, 'यंत्राधि देवतां त्रिः प्रदक्षिणां कृत वतो भक्तया ॥ ११४ ॥ अपनी शक्ति अनुसार फिर आदर सहित उत्तम पात्रों को दान देता हुआ मंत्र और यंत्र की अधि देवी की भक्ति से तीन प्रदक्षिणा करे। अर्चित गुरोर्विदध्यात्साध्यस्य गुरुः प्रसन्नचेता. स्सन आज्ञामेतयंत्रं समाहितं प्रार्थयत्यमिति ।। ११५ ।। फिर साध्य गुरु का पूजन करके उनको प्रसन्न करे यदि वह प्रसन्न हो जावे तो उनकी आज्ञा लेकर यंत्र का पूजन व अर्चना समाप्त करे । नीत्वा ततो विशुद्धे देशे साष्टाधिकं शतं वारान्, अभिमंत्रितं प्रतिष्ठा मंत्रेणा स्थापयेद यंत्र ॥ ११६ ॥ फिर शुद्ध स्थान में (नीत्वा) ले जाकर प्रतिष्ठा मंत्र से एक सौ आठ बार मंत्रित करके उस यंत्र की स्थापना करे। PSPS P59595 ८३१ PSPSPOP PSPAPE
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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