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9595296959595 विद्यानुशासन 59 प्रादक्षि एयेन वहि गौरी मंत्र समालिवेदस्य तदनुच, ठकार वलयं त्रितयं सं स्थापयेन्मंत्री
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उसके पश्चात मंत्री दाहिनी तरफ से गोलाकार में गौरी मंत्र को लिखकर फिर तीन ठः के वलय को बनाये ।
स्वर्णमयं रजतमयं ताम्रमयं चाष्ट पत्रम भोजं, विरच कर्णिकायां भुवनाधिपतिं लिखेत् तस्य
॥ १०५ ॥
फिर सोने चांदी और तांबे के अष्ट दल कमल बनाकर उनकी कर्णिका में भुवनाधिपति (ह्रीं) लिखे
अपराजित पिंडनुतं नमः पदांतु दलेषु विदधीत, तेषु ब्राह्मायादीनां देवीनां नामकं नाम्राः
॥ १०६॥
उसके दलों में अपराजित पिंडाक्षर (यू) सहित अंत मे नमः और आदि में ॐ लगाकर ब्राह्मी आदि देवियों को लिखे।
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सं शुद्ध निहित फलके शोधित धवलां बरेणा सं छिन्नो, निहितस्य तस्य पद्मस्योपरि संस्थापयेद यंत्र ॥ १०७ ॥ शुद्धि से रखी हुयी तख्ती के ऊपर शुद्ध सफेद वस्त्र बिछाकर उसपर कमल रखकर उसके ऊपर यंत्र रखे।
वहिरष्टोत्तर शतकः कलश जलैस्तद भिषिंच्या, पटयंत्रं सलिलजमलयोदगंधैः सर्चयेदर्चना द्रव्यैः
॥ १०८ ॥
फिर उस पट के यंत्र को बाहर से एक सौ आठ कलशों के जल से अभिषेक कराकर उसकी जल चंदन आदि पूजन के आठ द्रव्यों से पूजन करे ।
शंख पटह प्रतिध्वनिभिवद्यिनृत्यैश्च विविध गीतैश्च, अन्यै चैवं स्तदर्चयेन्मंगल द्रव्यैः
भूतै
॥ १०९ ॥
शंख पटह (नकारों) के शब्दों बाजे नृत्य और अनेक प्रकार के गायन और अनेक प्रकार के ऐसे ही मंगल द्रव्यों से उसका पूजन करे।
रचयेच्च पौष्प मंडपमु परिष्टान्मूल मंत्र परिजत्या, अधि देवतां प्रतिष्ठा मंत्रेण स्थापयेच्च पटे
॥ ११० ॥
फिर मूल मंत्र को जप कर उस यंत्र के ऊपर फूलों का मंडप बनावे और वस्त्र के ऊपर प्रतिष्ठा मंत्र से अधिष्ठाता देवता की स्थापना करे ।
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