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________________ 959526952 विधानुशासन 9595895959595 उसके बाहर आठ दल का कमल बनाकर उनमें जय मंत्र को लिखे पतों के अग्र भाग में ह्रीं और अतंराल में क्लीं लिखे। द्वादश पत्रेषु वहिलिखित स्यांभोरुहस्य पत्रेषु, न्यस्यहपिंड विलिखेत बं कारं तद्दलागेषु ॥ ९१ ॥ फिर उसके बाहर बारह दल का कमल बनाकर उसके पत्तों में हपिंड (ह्मचर्यू) लिखकर उसके पत्तों के अग्रभाग में वः लिखे । पत्रांतर भागेषु स्त्रीं रे तो द्रावकं लिखेत् बीजं, लिखितस्य वहिः षोडश दलस्य पद्मस्य पत्रेषु ॥ ९२ ॥ पत्र के अंतर के भाग में स्त्री के वीर्य को द्रायन करने वाला (पिघलाने वाला) बीज द्रां को लिखकर उसके बाहर सोलह दल का कमल बनावे । षोडश विद्या विन्यस्येत सानुसारेण कांतबीजेन, द्रींकारं पत्राग्रे तदंतर लिखित क्लीं च पदं ॥ ९३ ॥ उसके पत्तों में कान्त बीज ख के साथ सोलह विद्या देवियों के नाम लिखे उसके पत्तों के अग्रभाग में द्रीं और अंतराल में क्लीं पद को लिखे । रोहिणी प्रथमा देवी प्रज्ञपति वज्र श्रंखला, वज्रांकुशा प्रतिचका समं पुरुष दत्तया काली तथा महाकाली गौरी गांधार्य्यथा परा, ज्वालामालिनी मानवी वै रोटी चा च्युतामता मानसी च महामान स्यपि विद्याधि देवताः, षोडशैता विनिर्दिष्टा विद्यासागर पारगैः ॥ ९४ ॥ ॥ ९५ ॥ ॥ ९६ ॥ पहली देवी रोहिणी प्रज्ञप्ती वज्र श्रृंखला वज्रांकुशा अप्रतिचक्रा पुरूषदत्ता काल महाकाली गौरी गंधारी ज्वालामालिनी मानवी वैरोटि और अच्युता मानसी महामानसी इन सोलह विद्या देवियों को विद्यारूपी 'समुद्र के पार जाने वालों ने विद्या की अधिष्ठात्री देवता कहा है। पदमस्य तस्य बाह्ये मंत्रज्ञो वरूण मंडलं विलिखेत्, बाह्ये वकार पिंडं दद्यान्नामा क्षरांतरित : 9595959595915195 ८२८P/595959595195951 ॥ ९७ ॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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