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SSIOISODIO15255125 विधानुशासन 215251055050501
ततो विजय मंत्रण कायां समभि मंत्रितं,
निदध्यात कुत्र चिदगुप्त भूसं स्पर्श विवर्जितं फिर विजय मंत्र से अभिमंत्रित करके किसी गुप्त स्थान पर पृथ्वी को बिना छुये हुए रख दें।
ॐ विजय देवते त्रेलोक्य रक्षा क्षमे रख रख ल्व, घां ग्रीं घूयौं यः फट ये ये धूंधू ववये घे रक्ष रक्ष स्वाहा। विजय मंत्र:
वार कुजारव्य स्वात्यक्ष शुक्लाष्टमयां प्रकल्पसूत्, सिंहोदयेत्त द्दीयांशे कट हस्ताष्टट प्रमं
॥६६॥ मंगलवार स्वाति नक्षत्र शुक्ल अष्टमी सिंह के उदय होने पर उसी के अंश में आठ हाथ प्रमाण एक कुट बनावे।
तघ्राथ शोधिते कूटे चतुरश्च मनोहरे, याम्यात् सिद्रे चतुद्धार चतुस्तो रण संयुते
॥६७॥ तब उस शुद्ध किये हुए मनोहर दक्षिण दिशा में सिद्ध किये हुए चार द्वार याले चार तोरण युक्त
महादिग्धार विन्यस्त सहस्त्रनयना युधे, दिगंतराल भूभाग विनिक्षिप्त रथांगके
।।६८।। महान दिशा (पूर्व दिशा) में सहस्त्र नयन (आँख) वाले इंद्र के आयुध वज से युक्त विदिशाओं के भाग के स्थान में रथांगक (चकवे पक्षी) युक्त
दर्भमालापरिक्षिप्ते पुष्प दामोपशोभिते, सुगंध द्रव्य सं स्पृष्टे गायल्मगल पाठके
॥६९॥ दर्भ की माला रखे हुए पुष्पों (फूलों) की माला से शोभित सुगंधित द्रव्यों से स्पर्श किये हुए गायन और मंगल पाठ से युक्त
फलकं स्थापटोन्मंत्री शुभ दुम विनिम्मितं, तत्र प्रसन्न हृदटो स्तं काप्पसिं समर्पयेत्
॥ ७०॥ उस कूठ पर मंत्री शुद्ध वृक्ष की बनी हुई तख्ती की स्थापना करके प्रसन्न मन से कपास दे।
अपराजित पिंडेन कृत मध्या सिता सनं,
विभ्राण पाणि युगलं जय मंत्राभि मंत्रितं SSIOTICISTERDISTRISTS८२४PISODRISIOISTRICISION
॥ ७१ ॥