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________________ CHOTSIRIDIDISEXSTO5 विधानुशासन 950150150505ICISI अपराजित पिंड कम्ल्ययूँ से बनाये हुए कपास के आसन पर बैठी हुई जय मंत्र से मंत्रित दोनों हाथों को धारण की हुयी। ॐ जये महाजटो विश्वजये त्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं विघ्न विनाशनं कुरू कुरू स्वाहा || जय मंत्र कन्यका प्राङ्मुरयी स्वर्ण धनुषा सप्त वत्सरा, तं काप्पांसं सुसंस्कृत्य सूत्रं कुर्यात् यथा विधिः ॥७२॥ पूर्व की तरफ मुख किये हुई सोने के धनुष के समान सात वर्ष की कन्या को वह कपास दे। यह कन्या उस कपास को साफ करके उसकी विधिपूर्वक सूत बनाए। स्नातः सुभूषित वपुः: कुमारो स्पृश्य वंशजः, असंस्पष्ट मही पृष्टी दैत्याशाभि मुरवः स्थितः ॥७३॥ फिर स्नान किया हुआ सजे हुएशरीर याला स्पृश्य वंश में पैदा हुआ पृथ्वी को बिना छुये हुए दक्षिण की तरफ मुग किया हुआ। अपराजित मंत्रेण रचितात्माभि रक्षणः, तन्मत्रित शलाकादि साधनःशुभ लक्षण: ॥७४ ॥ अपराजित मंत्र से अपनी रक्षा किया हुआ उस मंत्र से मंत्रित शलाका (दंड) आदि साधन याला अच्छे लक्षणों याला कुमार जय मंत्राभि जप्तेन तेन सूत्रेण कल्पयेत् वस्त्रं तन्मंत्र संजतः पवित्रीत कर द्वया: ।।७५॥ अपने हाथों को उस मंत्र के जपने से पवित्र करके जय मंत्र से जपे हुये धागे से वस्त्र बनाए। प्रमाणं तस्य विस्तारे साद हस्तं करत्रयं, दीर्घभागे तु हस्ताना पंचकं प्रतति भवेत् ॥७६॥ वह वस्त्र चौड़ाई में प्रतीत (फैला हुआ) साढ़े तीन हाय और लंबाई में पाँच हाथ हो। तावद्विय टाक्ष मंत्राभ्यां जप्तैरष्टोत्तर शतं, प्रसिद्ध सरिदुद्भूतैः शुचिभिः क्षालयेज्जलैः ॥७७॥ SASIRISTOTATERIOTICIPS८२५ PXSTOTHRISTORICKSRTICLES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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