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________________ STEPISROISTOISTORIES विधानुशासन VIDEOSDISCI5015 ततस्तं यंत्रमाचार्यः सप्रसन्न चेत सा, तस्मै दद्यात्स चा दद्यादगुरौ भक्ति परां दधात् फिर आचार्य उस यंत्र को अत्यंत प्रसन्न मन से साध्य को दे देवे और वह भी अत्यंत गुरु भक्ति रखता हुआ उसको ग्रहण करे। कटयां बाहौ गले वस्त्र कूर्चिकायामथापिवा, एव मारचितं यंत्रं धारयेत्प्रतियासरं ॥६०॥ इस प्रकार बनाये हुए यंत्र को प्रतिदिन साध्य अपनी कमर, भुजा, गले, कपड़े अयवा कूर्चिका (सर) पर धारण करे। मारणानि प्रणाश्यंति व्याधिगे रिपवो ग्रहाः, श्री सौभाग्यायुरारोग्य जश्चिणियं वान्पुयात् ।।६१॥ इस यंत्र की शक्ति से मारण कर्म व्याधियाँ शत्रु और ग्रह नष्ट हो जाते हैं तथा लक्ष्मी सौभाग्य आयु आरोग्य जय और ऐश्वर्य की प्राति होती है। यक्ष राक्षस गंधर्व शाकिनीभूतपन्नगः, अन्यैरपि दशैन्नाटामभिसूटोत जातुचित् ।। ६२॥ फिर साध्य को या राक्षस गंधर्वे शाकिनी भूत पन्नग (सर्प) तथा और भी ऐसे यह कभी नहीं दबा सकते हैं। सततं धारयेदेत द्रक्षा यंत्रम नुतमं, यांतर्वर्तनीन तस्यास्यु गर्भ व्यापत्तयो रिवलाः ॥६३॥ इस उत्तम महारक्षा यंत्र को निरंतर धारण करने से पेट के अंदर की सब व्याधियाँ एवं रोग नष्ट होकर गर्भ की सब व्याधियाँ दूर हो जाती हैं। अथ साथ्यानुरूलेषु शुभतारो दयादिषु, उपादधीत कास्याणि स मंत्रं यक्ष सं जपन् ॥ ६४॥ साध्य के अनुकूल नक्षत्र आदि के उदय होने पर यक्षा मंत्र को जपता हुआ कार्यों को करे। ॐ यक्षाय अतुल बल पराक्रमाय सर्व सिद्धिं कराय, यक्षाय यं यं यं यं ह्रीं स्वाहा ॥ द्यक्ष मंत्र : SASTRISTRISTRISES5015251८२३PISTRISTRISIPISE5I0505
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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