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________________ CASRISOISSISTED55 विधानुशासन HSDISTRISODDISTRISI प्राच्या भानो गहीत दद्यात रक्तानं बलिं मंत्रवित, याम्यायां क्षेत्रपालस्य कृष्णोदन बलिं दिशि ॥ ४७ ॥ मंत्री पुरुष पूर्व दिशा में सूर्य ग्रहण को लाल अन्न की बलि देवे और दक्षिण दिशा में क्षेत्रपाल को काले भात की बलि देये। ॐ ब्रह्माणि देविस्थामा पनिया अहिले इसलिं गहा ह देवदत्तं रक्ष रक्ष शीधं वर दे ह्रीं हीं हुं फट स्वाहा || दिग्बलि मंत्रः हरित पश्चिममाशायां दद्यात यक्ष गृहे बलिं, पीत दद्या चळं कूपे रजन्युत्तर दिग्गी ॥४८॥ धेत यणां वळं पुटीमध्ये दद्या चतुष्पथे, ततो मरिचं तांबुली दल सादन नोदको ॥४९ ॥ सनिबं पत्र लवण रक्षा मंत्रस्य सं जपात् , साध्यं निवर्द्रयं संध्यायां निक्षिपेत् तानि पावके। ॥५०॥ पश्चिम दिशा में यक्ष के घर में हरी बलि देये- रात्रि को उत्तर दिशा में पीत नैवेद्य की बलि कुएँ में दे।शेतवर्ण की बलि नगर के बीच में चौराहे पर दें, फिर काली मिरच पान का पत्तासादन (फदनभात-सादन= कटु रोहिनी) उदक (जल) नीम के पत्ते नमक की रक्षा मंत्र जपता हुआ संध्या के समय साध्य पुरुष को नियर्द्धन करके इन वस्तुओं की बलि पायक (अनि) में देवे। यंत्र देने की विधि ॐ अपराजिते देवते देवदतं रक्ष रक्ष स्याहा ॥ अपराजित रक्षा मंत्रः मयुर पिच्छ गो भंग वंश त्यक वहती दलैः, दंति दंता हि निमोक निर्माल्योतु पुरीषकैः ॥५१॥ नंया वर्तस्य पुष्पैश्च वचया च विचूर्णितः, स्थदिरा दिवरागारैःधूप तस्मै प्रदापोत ॥५२॥ मोर की पूँछ (पंख) गाय के सींग बांस की छाल वृहती (कटेली) के पत्ते दंति (हाथी ) के दांत अहि (सर्प) निर्मोक (कांचाली) निर्माल्य (पूजा हुआ द्रव्य ) ओतु (बिलाव) की भिष्ठा नद्यावर्त (तगर) के फूल यथ इन सबको चूर्णकर खदिर आदि की श्रेष्ठ अंगारों पर डालकर धूप दें।
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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