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________________ S5IRISEXSTORIESO विधानुशासन X5I0RRIEDISCISSIST फिर उस यंत्र के बाहर गोल वलय बनाकर जल मंडल का संपुट बनाए फिर यंत्र को त्रिलोह (ताम्र १२ तार १६ सुवर्ण ३ भाग ) के अन्दर विधिपूर्वक जड़वा लें। गंधारिर्चितमिदम अपमत्यु जया हयं महायंत्रं, सप्ताभि मंत्रयोदथवा रानप मृत्युंजयमुना ॥ ३३॥ कृत्वा जैनी मिज्यां दत्वा च चतुर्विधाय संधाय, योग्यं दानं साध्य स्तद टांत्रं धारयेन्मूनि ॥३४॥ इस अपमृत्युंजय महायंत्र को गंध आदि से पूजकर सात बार इस मंत्र से अभिमंत्रित करे तो इससे अपमृत्यु जीती जाती है। जिनेन्द्र भगवान की पूजा करके चारों प्रकार के संघों को उनके योग्य दान देकर साध्य इस यंत्र को सिर पर धारण करे। हंत्यपमृत्यु दत्तमवन विशेषतः क्षुद्रकर्म, सर्वमर्पितनुते शांति सर्मदंवांच्छितांश्चान् ॥३५॥ यह यंत्र अपमृत्यु और सभी छोटे छोटे उपद्रवों को नष्ट करता है और अयन (संरक्षता) देता है और विशेष करके शांति और पुष्टि करता है तथा सुख और इच्छा किये हुए सब पदार्थो को देता है। गर्भध्वंसकराणां ग्रहोत्कराणां क्षणान्निराकरणं, विदधात्यंतर्वनाः क्रियमान मिदं शुभं यंत्रं ॥३६॥ यदि इस शुभ यंत्र को वन्नो (घर रहने के स्थान) में रखे तो यह गर्भपात करने वाले सभी ग्रहों को क्षण मात्र में नष्ट करता है। सिकत्यकवेष्टितमेतयत्रं शीतांबुधारी घट निहितं, कुरूते दाहोपशमं वारयति गृहकताः पीडा: ॥३७॥ यदि इस यंत्र को सिकथक (मधुमक्खी के मोम) में मढ़कर शीतल जल की धारा वाले घड़े में रखा जाए तो यह यंत्र शरीर की दाह (जलन) को शांत करता है और ग्रहों की पीडा का निवारण करता
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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