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विद्यानुशासन
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साध्य के अथवा अपने अनुकूल उत्तम नक्षत्र उडु (तारा) करण होरा आदि में अमृत नाड़ी (चंद्रस्वर) के चलते हा कार्य काले पा नहीं होले गग कार्य भी दलला उत्तम होता है कि मन प्रसन्न हो जाता
है।
सर्वे: सुरभि द्रव्यैनंव रत्न युतैन्नैवैर गर्वाः , कपिला गोक्षीर युतैः शुद्ध द्विज कन्याया पिष्टैः
॥ २८॥
नवहेमपात्र निहितैः कनक शलाग्रकभाग समुपात्तः,
विलिरव्येत्साध्यास्या रय्याभूर्ज दल वि निर्मिते मंत्री ॥२९॥ सब सुगन्धित द्रव्य नौ रत्ल और नये अंगुर आदि को काली गौ के दूध से शुद्ध की हुई द्विज की कन्या से पिसवावे । नये सोने के बर्तन में सबको रखकर सोने की बनी हुई कलम के अग्रभाग से भोजपत्र पर मंत्री साध्य के नाम को लिखे ।
झं वह: पः क्षः शशिर्भिवॆष्टय स्वरैश्च षोडशाभिः,
तद्वार्थी प्रविलिरख्यं द्वादशदल संयुतं कमलं ॥३०॥ फिर उसके बाहर झं वं व्हः पः : और शशि (चन्द्रमा) से वेष्टित करके नाम को सोलह स्वरों से भी येष्टित करे उसके बाहर बारह दल वाले कमल को बनाये (लिने)
तेषु दलेषु विलेख्य द्वादशभिः संयुतै स्वरैः,
शून्यांतभंभसा संपुटितं प्रवेष्टामपमृत्युंजयममुना ॥३१॥ उन दलों में बारह स्वरों से युक्त शून्य बीज (हकार) को लिखे उसके बाहर दो जल मंडलों का सम्पुट बनाएँ इस यंत्र से अपमृत्यु जीती जाती है।
ॐनमोभगवते देवाधिदेवारा सोपद्वविनाशनाय सर्वापमृत्युंजय कारणाद्य सर्व सिद्धिं कराय ही ह्रीं श्रीं श्रीं ॐॐकौं क्रौं ॐ ॐ ठाठः देवदत्तस्यापमत्यु घातय घातय आयुष्यं वृद्धव वृद्धय स्वाहा || अप मृत्युंजय मंत्रः
बाह्ये वलयं कृत्वा जल मंडल संपुटं ततो दद्यात, लोह त्रितयेन ततो यंत्रं त द्वेष्ट टोद्विधिना ना
॥३२॥
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