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________________ SRISTOISTRI5015105 विधाबुशासन NEXDISTRISTRISTOTATOES ॐणमो भयवदोवट्ठमणा रिसरस जस्सचकंचलतं गच्छई आयासंपायालंलोयाणां सं भूटाणां जये वा विवादेवा रणं गणेवार्थभणेवा मोहनेवा सव्व जीव सत्ताणं अपराजिदो होटु मम रक्ष रक्ष असि आउसा है ह्रीं स्वाहा ।। श्री वर्द्धमानमंत्रोयं सिद्धयत्य युत जाप्पतः, महावीर जिनेन्द्रोधि दैवत सार्वकार्मिकः ॥२२॥ मंत्रस्यास्य भवेज्जप्त्य श्यायु विद्या वशी कतिः. समृद्धिधन धान्यानां सौभाग्यं स्तंभनं कृतः ॥२३॥ संग्राम व्यवहारादौ विजयः पथि रक्षणं, शांति गृहाणामारोग्यमन्य च फल मुत्तमं : ॥२४॥ तज्जप्तांबुकत स्नानंभजो गर्भ प्रदं स्त्रियः, एतन्नित्य जप; सात संपादाति संपदः ॥२५॥ यह श्री वर्द्धमान स्यामी का मंत्र दस हजार जप से सिद्ध होता है इसके सब कार्यों में श्री महावीर भगवान ही अधिष्ठाता देता है। इस मंत्र को जपने से लदमी आयु विद्या वशीकरण धनधान्य की समृद्धि सौभाग्य और स्तंभन होता है। इस मंत्र से युद्ध और मुकदमे में विजय मिलती है, मार्ग में रक्षा होती है, ग्रहों की शांति होती है, आरोग्य मिलता है तथा और भी उत्तम फलों की प्राप्ति होती है। इस मंत्र से अभिमंत्रित किये हुए जल के स्नान से स्त्रियों से भोग करने से गर्भ रहता है। तथा इसका नित्य जप करने से सब संपत्तियाँ आती हैं। मंत्रत्रय मिदम निशं सं संवित मादरेण लोकस्य, रत्न प्रय मिव कुरुते शुभं सदा नाशयत्य शुभं ॥२६॥ इन उपरोक्त तीनों मंत्रों का आदरपूर्वक प्रतिदिन जाप करने से यह सदा रत्नत्रय के समान हित करते हैं और अशुभ का नाश करते हैं। स्वत्यनुकूले काले साध्यस्य शुभोडुकरण हौरादौ, वाहे चामृत लाडया स्सति सति न सति प्रसीदति च ॥२७॥ CHECISISISTRICISTCASIO51 ८१४ 351875ICISISITORSCIETOISI
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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