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CASTRISTRISIRIDIO505 विधानुशक्षन ASTRISIODOISSISTOTS
मुद्रशालि राव गोधूमां बुज बिल्व गव्य तिल माषान, विनस्य ताम रचिते पात्रे तत् तंतु वा बद्धा
॥१६॥
अट्टे मावस्टायाः पर्व स्मिन् मत्रितंतता निरवत् ।
गृहलस्य क्षेत्र शस्यादौ तत्तदोगाः प्रणश्यति ॥१७॥ मुदग (मूंग) इक्षु (ईख) शालि (चावल) यव (जौ) गोधूम (गेहूँ) अंबुज (कमल) बिल्व (बेल) गव्य (गाय का दूध) तिल माषान (उड़द) को ताँबे के बर्तन में रखकर उसको धागे से बाँधकर अमावस के पहले आधे भाग में इस मंत्र से इन सबको अभिमंत्रित करके घर में नृत्यशाला में और खेत की फसल आदि में गाड़ दे तो उसके सब रोग नष्ट हो जाते हैं।
लक्ष्मी रूक कर गय्य तुलसी वार्क दारवी वा निशा बिल्वां, भोज दलानि भंग सुरसा भद्रंद्र वल्लि कुशाः राजी रक्त ॥१८॥
तिलोपामार्गा तुहिन क्षीर दुमत्वगटल क्रांत्यु, ग्रामशुरोचना मुशलिका अन्याश दिव्यौषधि:
॥१९॥
भस्मी कृत्य घटोदरे विनिहिताः पश्चादु पादाय तद्भस्मानेन, सहस्त्रबार जपितं मूर्दादिकेष्वर्पयेत् तत्तत्क्षुद्रग्रह रोग कृतस्तु वितरस्यायुः ॥२०॥
श्रियं संपदं सौभाग्यं विजयं च रक्षति, शिशून् गां गर्भिणीश्च स्त्रियः
॥२१॥ लक्ष्मी (ऋद्धि वृद्धि) रूक () करष () गव्य (गाय का दूध ) तुलसी याक (रस) दारवी () निशा (हल्दी) बिल्व (बेल) अंभोजदलानि (कमल के पत्ते) भंग (भागंरा) सुरसा (लाल तुलसी) भद्रा
अनंत मूल = कायफल) इंद्रवल्ली (इंद्रायण) अशा () राजी (राई) रक्ततिला (लाल तिल) अपामार्ग (आधी ञडा चिरचिटा) तुहिन (कपूर) क्षीरदूम (दूध वाले वृक्षों के पत्ते )क्रांति ()उया (अजमोद) मश्रु (मसूर) रोचना (गोरोचन) मुशलिका (मूसली) और दूसरी भी दिव्य औषधियों को घड़े में रखकर भरम करके उपाय पूर्वक भस्म को निकाल कर उस भस्म को एक हजार बार जप कर मस्तक आदि पर रखे तो छोटे मोटे रोग नष्ट हो जाते हैं। यह आयु लक्ष्मी संपदा सौभाग्य विजय मिलती है तथा बच्चों गाय और गर्भिणी स्त्रियों की रक्षा करती है।
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