SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 818
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1551 विधानुशासन 25/ धाति कर्म क्षयो नाम माला मंत्रोयं मत्तमं. श्री पार्श्वनाथ भगवानस्य स्यादधि देवता ग्रहका 118 11 जपो द्वादश लक्षोऽस्य पुरश्चरणामच्यते, तलधतुः सहण संघ पेपै ॥ १०॥ यह धाति कर्मक्षय नाम का उत्तम माला मंत्र है इसके अधिष्ठाता देवता श्री पार्श्वनाथ भगवान है । बारह लाख जप का इसका पुरश्चरण कहा गया है फिर उसको सुगंधित पुष्पों के द्वारा चार हजार जपना चाहिए। सन्निध पार्श्वनाथस्य ततो सौ सिद्धि मृच्छति, इत्थं संसाधितेः सर्व शुभाशुभं फलावहः छेदनः परमंत्राणां सर्वक्षुद्र निशुदनः, भेरूंड शरभ व्याघ्र हरि वारणा वारणः इसप्रकार श्री पार्श्वनाथ भगवान के सामने बैठकर सिद्ध किया जाने पर यह सिद्ध होकर सब शुभ और अशुभ फलों को कहता है यह दूसरों के मंत्रो का छेदन करता है भेरूंड पक्षिराज शरभ (अष्टापद) व्याघ्र (यघेरे) हरि (सिंह) चारण (हाथी) को दूर करता है । ॥ १२ ॥ ॥ ११ ॥ प्रति मंत्रि कृतं रुधेत् शिलाग्न्यादि नितापनं, अंशा अप्पस्य वहवो मंत्रा वहु फल प्रदा ॥ १३ ॥ इस मंत्र से अभिमंत्रित करने से शिला में से अग्नि आदि का ताप भी दूर होता है, इस मंत्र के बहुत 'से फल देने वाले बहुत से अंश भी हैं। एतज्जप्ता द्दषद पामेन्टयस्य प्रपूरिते गव्यैः, मेष मृगादि राजं चापं वा ध्यासिते भागे ॥ १४ ॥ दश (ष) द (पत्थर) के बरतन में गोदूध को रखकर इस मंत्र को जपने से मैदा मृगराज (सिंह) आदि इस भागमें रहना छोड़ देते हैं। अभिजित नाम्नि मुहूर्त शुक्लाष्टम्यां समाहितो, निखने ते मध्ये क्षेत्र मंत्रिक्षेत्रं द्रोह स्ततो नश्येत् ॥ १५ ॥ यदि मंत्री इस मंत्र को अभिजित नाम के नक्षत्र में शुक्ल अष्टमी के दिन एकान्त चित्त होकर खेत के बीच में समाहित (रखकर) या गाड़ देवे तो खेत के उपद्रव और न्यूनताएँ सब नष्ट हो जाती है । CSPAPSPSP52525-P5252525252525
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy