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SAS1015105501555 विद्यानुशासन 95015185TOISIOTECISI
श्री जिन सेनेम मुनिना यत्कृत मुपायं धर्म रक्षार्थ,
संतम संतं तं प्रति सारेणा बुबे अणुभो भव्याः ॥२॥ हे भव्यो धर्म की रक्षा करने के वास्ते श्री जिनसन मुनिराज ने जो उपाय कहा है उस उपलब्ध (मिलते हुए) और अनुपलब्ध (न मिलते हुए) को भी मैं अब विस्तार (प्रतिसार) से कहूँगा ।
धान्यैश्च राजभिलॊके चोपायो होम कस्यतु. प्रोक्तोनानोपधान्टौ श्च होमेन कत उत्तमः
॥३॥ लोक में धान्य और सफेद सरसों (राजि= राई) से हवन करना उत्तम उपाय कहा गया है। अनेक प्रकार के छोटे-छोटे उपधान्यों से किए हुए हवन को उत्तम नहीं कहा गया है।
जयन्टौरपिन प्रोक्तो होमः सर्व सुरवाकरः,
तस्मात् क्रियेत् यलेन विदुषाज्ञानिना धुवं जघन्य द्रव्यों से किये हुए होम को भी सब सुखों को करने वाला नहीं कहा गया है- उस वास्ते यह होम विद्वान ज्ञानी के द्वारा यत्न से ही निश्चयपूर्वक किया जाना चाहिए।
ज्यालिनी पदमावत्यं बिकाश्च चक्रेश्वरी,
समेता स्ता सां कल्पेऽथ पंचांगे उनका वर्णन ज्वालामालिनी पद्मावती अंबिका और चक्रेश्वरी देवियों के कल्प तथा पंचांग में किया गया है।
दष्टव्यो होम विधि मारणनाशस्तुचा न्यैश्च, आशाधरादि कृत अपि होमः पल्लव शांति युक्तः
॥६॥ दूसरे लोगों के किये गये मारणा कर्म को नष्ट करने के वास्ते होम विधि को आशाधर आदि के किये हुए शांति के पल्लव सहित होम की विधि को देखना चाहिये।
मारणामपि करोति होभाश्च स्व स्व पल्लव संयुक्ताः.
तेषां विचार एवहि करोति होमच सिद्धिमेति भृशं ॥७॥ अपने अपने पल्लवों से युक्त होने से होम मारण भी करते हैं उनको विचार पूर्वक करने से ही सिद्धि हो जाती है।
ॐ वृषाभाजित संभवाभिनंदन सुमति पद्मप्रभु सुपार्श्व चंद्रप्रभ पुष्पदंत शीतल श्रेयांस वासुपूज्य विमलानंत धर्मशांति कुंथ्वर मलि मुनि सुव्रत नमि नेमि पार्थवीराः परमेष्टिनोपि देवाः सर्वेपि शांति कुरुत कुरूत स्वाहा ।।
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