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________________ SASOISONSTRISTIS95 विद्यानुशासन ISIOISSISTRISADSRIES विग्रह मित्यर्थः यद्वा तत्त्वं ब्रह्म तद्रूपम सगुण निर्गुणात्मक ब्रह्म मय मित्यर्थः वेद स्तत्वं तपोब्रह्मब्रह्मा विप्रःप्रजापति रिति कोशःशरणया:शरणेसायुःशरणय स्तम तत्र साधुरितियत शरणार्ह मित्यर्थः अमोघं अव्यर्थ वरनं मोद्यं निरर्थकं स्पष्टं स्फुट प्रव्यक्तमुज्वल मितिकोशः परिकर सहितं परिकराः प्रचारक गणास्तै समेतं युक्तम |॥ ३॥ हे शंभु ! मैं तुमसे यह प्रार्थना करता हूँ कि जो मुझसे बाहर से क्या किन्तु मन से भी द्वेष कर रहा है उसके प्राण तुम अपने हाथ में रहने वाले मुशल के द्वारा आघात कर, इस तरह यमदूतों को पकड़वाओ कि जिससे वे (प्राण) चिल्लाते हुए यमपुर को पहुँच जाए। तुम सारे देवताओं के आदि हो सबको इष्ट पदार्थ के देनेवाले, हो सम्पूर्ण भय को हरण करने वाले हो, तुम वेद स्वरुप हो, और सारे जीवों को शरण देने वाले भी तुम ही हो। इसलिए तुम मेरी इस प्रार्थना को पूरा करो अमुक व्यक्ति को दंड दो। द्विष्मः क्षोणयां वयं यं तव पद कमल ध्यान निद्भूतपापा: कत्या कृत्यै विमुक्ता विहग कुल पते रखेल या वद्ध मूर्ते तूणं त्वत्पाणि प दम प्रयत परशुना रवंड खंडी कतांगः सद्वेषी यातु थाम्यं पुरमति कलुषं काल पाशाव वद्धः ॥४॥ द्विष्म इति भो विहग कुलपते पक्षिवंशावतंस क्षोणयाम वनितलेयं द्वेषिणं वयं द्विष्मो द्वेष विषयी कुर्मः स द्वेषी रिपुःतूर्णम चिरात त्वत्पाणि पदम प्रयत परशुना तव कर कम लाग्र यतिना कुठारेण खंड खंडी कतांग: छिन्न भिन्न तनु रथो काल पाशाव वद्धःछांद सत्वा चतुर्थी तथाय काल पाशेन मृत्यु पाशेन वद्धो विवशी कृतो याम्टां पुरं रामस्य संयमनी पुरी यम लोकं यातु गच्छतु काल पाशाय वद्ध इदि पाठे अप गत्या नाना विद्यया तनया वद्ध इति अति कलुषमिति याम्य पुर विशेषणाम निरयातिश मिति तस्यार्थः नन्वयं विहग पति रेवतहि किमस्य स्तुत्या भविष्यतीत्याशंक्याह रवेलया वद्ध मर्ते रिति खेलया कीडया वट मर्ते स्वीकता नेक विगह कीड़ा वेला च कुर्दन मित्यमरःएवंच नान्या शकुनि नामिव स्वकर्म सूत्रानु सारेणापक्षि जन्मवानयं किंतु भक्तानुग्रह कारणात्स्वीकृता नेक वेश वाने वेति भावःवय मितस्य विशेषणा माह तव पद कमल ध्यानेति तव पद कमल ध्यानेन नष्ट पापा इति तथा कृत्या कृत्यै विमुक्ताः प्यान स्यात्र प्रक्रमः तव पद कमल ध्यानेन पदम पत्रमियां भसा कार्याकार्य कर्मज पुन्य पापान व लिप्ता इत्यर्थ:एतेनमारणोत्थापनष्टोप्टो तद्भध्यानमत्र प्रायश्चित मुक्तध्यानं जपस्या प्पुप लक्षणम तदुक्तं मंत्र महोदद्यो कालरात्रि प्रयोगे मारणांतु प्रकुर्वीत ब्राह्मणे तर विद्विषि तद् शुद्धार्थ जपेन्ल मंत्र मष्टोत्तरं रातमिति ॥ ४ ॥ OFFENNEL Colಣಗಣಣಣಠಣದ
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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