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________________ STSIDIO21505505 विधानुशासन 2050515DISSEDIES शंभोत्वद्ध स्तंति हे शंभो हे शालुवेश हे शरभ है खगपते हे पक्षिराज इंदशाश्चंड़ मुख्या:चंडेश्वर प्रवभूतयस्त्वदगणाः यस्य तगणास्संति सत्वं सततं नस्वाहि निरंतरं मां पाहीत्यर्थः यद्वा चंड़ स्त्वत्यंत कोपन इति कोशा चंडेषु अत्यंत कोपनेषु मुख्या: प्रधानाः वीर भद्रादयो यस्य तव गणा इत्यर्थः कीदृशाः त्वद्धस्त कुंतेन भवत्कर पल्लव वर्त्तिना कुंतेन भल्लेन प्रसिद्धेना युधेन क्षतं विदीर्णं यदिपु हृदो तत सवलंतं निर्गच्छंतं लोहि तौयं रक्त संग्रातं पीत्वा पीत्वापुनः पीत्वा अतएवातिदप्पद्धिलादति गति क्षिप्रवेगा अति त्वरित वेगा संतो दिशि दिशि सर्व दिक्षु गज्जति प्रणिनदंति पुनश्च कीदृशाः निरिवल भय हराः भीकराः साध्व साधुनामिति विवेकः भीतिभी साध्व संभय मित्यमरःखेला लीला:केलिचपला: स्वेला शब्द स्यात्र स्वत्वमार्ष संत्रस्त ब्रह्मदेवाः क्रीड़ा लौल्या बलोकनेन सं त्रस्ताः चकिता ब्रह्मादयो देव गणाटम्टा स्तादृशा इत्यर्थःस्तो भीतश्चकितोदारितश्च शम प्रभ इति कोशः अनेक संवोध्य पदो पादानेन स्वस्या त्यंत मातत्वम शूचयत ॥२॥ हे शालुवेश ! हे संभव ! हे शरभ : हे सानि ! हे पक्षिर जा तुम जीवितरक्षा कसे तुम्हारे चंडादि गण साधुओं के सम्पूर्ण भय को हरण करनेवाले हैं और दुर्जनों के लिए बड़े भारी भयंकर हैं। वे तुम्हारे हाथ में रहनेवाले भाले के द्वारा मारे हुए दुश्मन के हृदय से निकले हुए रक्त को पीकर अत्यंत अभिमान के साथ प्रत्येक दिशा में गर्जना करते रहते हैं। वे अत्यंत वेग वाले है और क्रीड़ा करने के लिए यह चपल रहते हैं तथा यह ब्रह्मादिक देवो को तंग करनेवाले हैं। इस तरह के गणों के मालिक हे शारभेश्वर तुम मेरी रक्षा करो। सर्वाय सर्व देष्टं सकल भय हरं तत्व रुपं शरण्यं, या च हत्वा नमोद्यं परिकर सहितं द्वेष्टियोंत: स्थितं माम् श्री शंभो त्वत्कारब्ज स्थित मुसल हता स्तस्य वक्षःस्थल स्थ प्राणा प्रेतेश दूत ग्रहण परि रवा कोश पूर्व प्रयान्तु ॥३॥ अमुकं दंडय २ सवाद्यमिति हे श्री शंभो सुभगांग शंभो इति त्वामहं याचे प्रार्थी किंतदाह टोमामंत स्थितं मनसि स्थित मपि दष्टि किमुत बहि:स्थितं तस्य वक्षःस्थ प्राणा हृदगत प्राणा स्त्वकर कमल तल वर्ति मुसल हता संतः रामदूत सं परि गृहीता उच्चैःशब्दं प्रकुर्वाणा:प्रयांतु यम पुरं व्रजंतु इत्यन्वयः सद्यमित्यादि त्वा मित्य स्ट विशेषणं सर्वाचं समस्त प्रपंच स्यादि भूतं सर्वदेष्ट सर्वकाम प्रपूरकं ईग्लक्षणं द्वष्टं वरो टास्ट तादशं यद्वा सर्वदा सर्वकालं वरो यस्य तादृशम् निरन्तर वरदानोटम शीलमित्यर्थः सकल भय हरं सर्व भूतेभ्यो रक्षितारं तत्वं स्वतत्वं वेद ලහටගටගහවටය උox එයටයුතුවලටවලය
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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