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________________ COSIOTECTERSISTETSID5 विधानुशासन ISISIST9T53015251975 श्मशान के कोयले से काले किये हुए नमक को नाम के पत्र धूमस के साथ सरसों का तेल और गुगुल का होम करने से शत्रु मरण को प्राप्त होगा इस गाथा का रोज दो हजार फूलों से जाप करे। ॐ कोपोद्र कात्त वीर्य कुटिल परि करं तारद्यारि प्रभूतं ज्वाला मालाग्नि दग्द स्मरतनु सकलं त्वामहं शालुवेश ॥ सात्वतयारदम प्रगति मजस देहिनंद्यः क्रिटाभि स्तस्य प्राणा वसानं पर शिव भवतः शूल भिन्नस्य तूर्णम् ॥१॥ श्रीः हे शालुवेश शरभेश्वर त्वत्पद कमल निवेशित चित्ते नत्वा महं याचे किंतदाह अरि प्रभूतं मां तारय प्रभूताः प्रचुरा अरयो यस्टो द्दशं मां तारयोति एवमरि वृंदे-टोमां रक्ष प्रभूत शब्द स्यात्रपर निपात आषेः उक्त मेवार्थ प्रपंचयति हे पर शिवयो ममाभिचार क्रियाभिष्टि द्वेषेण ममोपरि मारणादि क्रियां करोति तस्य भवच्छूल भिन्न स्य प्राणा वसानं प्राण नाशस्तूर्णत्वरितं भयतुत्यामित्यस्यविशेषणमाहकोपोद्रेकात मिति कोपोटेकेनकोपोदगर्मन आर्तगहीतं प्रकटीकृतं दीर्य बलं स्वभावो वायेन तादश मित्यवःवीर्य बले स्वभावेचत्यमरः वीर्य स्वभावे बले कौटिल्येपिच नपुंसक मिति हाराबलिः कुटिल परिकरं कुटिला: दुरधि गम्याः परिकराः प्रवारका: वीर भद्रादयो गणायस्य तादृशम ज्याला मालेति ज्वालानां माला माला वत्पंक्तिर्य स्मिन् ताशेन तृतीय नेत्रोद्भूताग्निनादग्धाभरमी कतासकला स्मर तनुःकंदर्प गारोन तथा भूत मित्यर्थः सकल शब्द स्यात्र पर निपात आर्ष:वस्तु तस्तु सकल तनु मिति सुपाठः हे शालुभेश्वर तुम्हारे पद कमल में अपना चित्त लगाकर तुमसे यह याचना करता हूँ कि तुम मेरी शत्रुओं से रक्षा करो क्योंकि मेरे बहुत शत्रु है और वे अभिचार वगैरह क्रियाओं द्वारा मुझ पर मारणादि क्रियाओं का प्रयोग करते हैं इसलिए आपके त्रिशूल के द्वारा उनके प्राणों का नाश तत्काल हो, आपके वीर भद्रादिगण बड़ी कठिनता से जानने के योग्य हैं अपनी ज्वालाओं के समूह के द्वारा तीसरे नेत्र से कामदेव को नष्ट किया है और क्रोध के समय आपकी शक्ति और भी ज्यादा बढ़ जाती है। शंभो त्वद्धस्त कुंतं क्षत रिपु हृदयानि सूवल लोहि तौद्यं, पीत्वा पीत्वाति दो दिशि दिशि सततं त्वद गणाश्चंड मुख्याः गजति क्षिप्रवेगा निरिवल भय हरा भीकराः खेल लोला: सं त्रस्त ब्रह्म देवाः शरम रखगपते पाहिन श्शालुवेश ॥२॥ OSSISTRASTRISIOSIT5055[८०३PISTRISITISTOSTERISTRIES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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