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________________ PSPSPSPSS विधानुशासन 25 तापयेदुत्ताषाढे नृ कपालेकृतं रिपो प्रतिरूपं चितावह्नौ महारोगः प्रजायेत 95PSP595 ॥ १२८ ॥ उत्तराषाढ़ नक्षत्र में मनुष्य के कपाल पर शत्रु का रूप बनाकर उसको चिता की अग्नि में डाल देने से शत्रु को महान रोग हो जाता है। चंडासास्थि पुरोगेटे खातं स्तंभात द्विषांश्च, पिष्टाया मुल्लुकास्थि विद्वेषोच्चाटन प्रदं ॥ १९९ ॥ शत्रु के घर में चांडाल की हड्डी को गाड़ने से शत्रु को स्तंभित करती है तथा उल्लू को हड्डी को पीसकर रखने से विद्वेषन और उच्चाटन करने वाली है। वारुणे काक पक्षेण प्रतिमा नृ कपाल के विषा, सग् भाविता भूति छञोत्साधयतदगता ॥ १३० ॥ पश्चिम दिशा में कौवे के पंख से मनुष्य के कपाल पर विष और खून से भावना दी हुयी राख से शत्रु की प्रतिमा बनाने से शत्रु का उच्चाटन होता है। द्विज चंडाल माजरि वृको लूक द्विजास्थिभिः, भ्रांति गृह चिता न्यस्तैः स्यात्पूत्तर भाद्रयोः ॥ १३१ ॥ पूर्वा भाद्रपद और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में ब्राह्मण चांडाल बिलाव वृक (भेड़िया - कौवे गीदड़ ) उल्लू की हड्डी को तथा पलाश की लकड़ी की चिता पर रखने से शत्रु का घर से उच्चाटन करती है। साध्यस्य जन्म नक्षत्रे यः कीलः परिभाषितः, पौष्णोपि स्वतंतं प्राहु: संत स्ततत्फल प्रद ॥ १३२ ॥ साध्य के नक्षत्र के पेड़ की जो कील गाड़ी जाती है विद्वानों ने उसको विशेष फल देने वाली कही है अगर उसको जन्म नक्षत्र में ही गाड़ी जाये। स्नूक क्षीर भावितेभ्यो यत् तिलेभ्यस्तैल माहतं. तस्याऽभ्यंगेन केशाः स्युः काशनी काश रोचिषः ॥ १३३ ॥ थूहर के दूध में भावना दिये हुये तिलों के तेल को मलने से बाल काशनी के समान कांतिवाले अर्थात् सफेद हो जाते हैं । 252525252525251P5050505252525
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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