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________________ 959595959SPX विधानुशासन 259595959हए ॥ १२२ ॥ खरादुत्तर फाल्गुन्या मुन्मादो द्वारि सदमनः, गजारव्यं तदगृहं हस्ते स्वाद परमार पीडनं उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में गधे और चूहे की हड्डी की कील को शत्रु के घर के द्वार में गाड़ देवे तो शत्रु को उन्माद हो जाता है या हस्त नक्षत्र में ही की हड्डी की कील गाड़े तो शत्रु को उन्माद की पीड़ा होगी। चित्र रूक्षऽजायजा स्थाने तदजानभिवृद्धयो, भवने कुकलास्थि स्वातौ स ककलाल वत ॥ १२३ ॥ चित्रा नक्षत्र में बकरी की हड्डी की कील को बकरियों के स्थान में गाड़ने से बकरियाँ बढ़ती है और स्वाती नक्षत्र में शत्रु के भवन में कृकलास (शरद छिपकली) की हड्डी गाड़ने से वह शरठ की तरह हो जाता है । शार्द्धलास्थि विशाखासु शय्यायां जनयद्रजं, भीतिकं वंध्यां विदध्यात् शयने स्त्रियं ॥ १२४ ॥ विशाखा नक्षत्र में शार्दूल सिंह की हड्डी की रज को बिस्तर पर रखने से स्त्री भयभीत और चंध्या हो जाती है। नक्तमाल मां की लं ज्येष्ठयां रिपु मंदिरे, निखनेत्तस्य सद्य: स्थादलक्षी दुःखदायिनी ॥ १२५ ॥ ज्येष्ठा नक्षत्र में नक्तमाल (करंज) की कील को शत्रु के घर में गाड़ने से उसको दरिद्रता (अलक्ष्मी) दुःख देने लगती है। मूले चिता प्रतिकृतेः कीलः श्लेष्मांतकोदभवेः, गुह्ये शिरासि चन्यस्तो दूर मुच्चाटये द्रिपुं मूल नक्षत्र में शत्रु की मूर्ति के गुह्य (गुप्त अंग) में तथा सिर में चिता में ( लिसोठे) की कील को गाड़ने से शत्रु का दूर से ही उच्घाटन हो जाता है। ।। १२६ ।। से ली हुयी श्लेष्मांतक न्यस्ता रूयायाश्चिता भूत्या मध्ये प्रतिकृतेः खनेत, चिता स्थाप्येत दग्नौ तां क्षिपेत् शून्यो भवेदरिः ॥ १२७ ॥ चिता की राख से शत्रु का नाम लिखकर उसको शत्रु की प्रतिमा में गाड़े फिर उसको चिता की अग्नि में रख दे तो शत्रु आग के अन्दर छिप जाता है। PSPSPSPS ७८९PGP58 59595एक
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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