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PSPPSPOPPY विधानुशासन 959595959
यदि शत्रु के घर में चिता की लकड़ी में पीपल की सात अंगुल लम्बी कील गाड़ी जाए अश्वनी नक्षत्र दक्षिण दिशा में तो वह घर नष्ट हो जाता है।
कृतिका सु खनेत् कैल्व क्षेत्रे धान्य क्षयो भवेत्, रोहिण्यां रोहिणी वृक्ष कीलं कोष्ट गृहे खनेत्
॥ ११६ ॥
कृतिका नक्षत्र में बिल्व की कील धान्य के खेत में गाड़ने से धान्य नष्ट हो जाता है और रोहिणी नक्षत्र में रोहिणी (मांस रोहिणी) वृक्ष की कील को कोठे के घर में गाड़े ।
सौम्य मृगास्थि शय्यायां न्यसेत् स स्यात् मृगोपमः, व्याघातकाल माद्रायं रिपोर्गह ज्वरायसः
॥ ११७ ॥
सौम्य (मृगसिर नक्षत्र) में मृग की हड्डी की कील शत्रु के बिस्तर में रखने से वह मारने के समय मृग के समान हो जाता है और आद्रा नक्षत्र में रिपु के घर में रखने से उसे ज्वर हो जाता है ।
मयुरास्थि मयं कीलं सिकत्थक प्रतिमा हृदि, आधितो निखनेत् शत्रो महारोग करोमतः
॥ ११८ ॥
मोर की हड्डी की कील को शत्रु की प्रतिमा के हृदय में गाड़ने से अत्यंत रोग करने वाली मानी
गई है।
पुष्टी अस्थि प्रतिकृतेः पादे पंगुत्व मावहेत्. करे सप्पास्थि सप्पक्ष सर्प दृष्टो भविष्यति
॥ ११९ ॥
पुष्प नक्षत्र में शत्रु की प्रतिमा के पैर में हड्डी गाड़ने से वह लंगड़ा हो जाता है और हाथ में सर्प की आंख की हड्डी गाड़ने से शत्रु सर्प की सी आंख वाला हो जाता है।
मघा सु उष्ट्रा स्थिजं कीलं सिखनेत् प्रतिमालके, द्विषः सशीर्ण रोगाय सयोऽनलाय कल्पते
॥ १२० ॥
मघा नक्षत्र में शत्रु की मूर्ति के भाल (पेशानी-ललाब) में अथवा बालों में ऊंट की हड्डी की कील गाड़ने से शत्रु के सिर का अग्रि जैसा रोग शीघ्र ही हो जाता है।
कोष्टागारे खनेद्भगो मूषिकास्थिमयं रिपो क्षेत्रेवा तदगृहे धान्यं मूषिकैरैव च भक्षिते
॥ १२१ ॥
शत्रु के कोठे या खेत में चूहे की हड्डी की कील गाड़े तो उसके धान्य को चूहे खा जाते हैं।
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