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________________ 959595951 विद्यामुशासन 959595969595 इस यम मंत्र को एक लाख जप से सिद्ध करके चित्ता की नयी मिट्टी में अपने पैर की धूल मिलाकर उससे शत्रु की मूर्ति बनाये | रक्त कुसुमार्चिताया पत्रा वरुणमलयजात लिजाप्ताया:, अंगे कंटकैः स्यात् तेषु द्विषतो महान्व्याधिः ॥ ९८ ॥ उसका लाल फूलों से पूजन करके तथा लाल चंदन आदि से लेप करके उसके जितने अंगो में कांटे से छद किया जाए तो शत्रु के उसी अंग में महान रोग हो जाए। ॐ नमो भगवते रुद्राया भ्रमः भ्रमः भ्रामय भ्रामय अमुकं विभ्रामय विभामय उदभामय उदभ्रामय रुद्र रौद्र रूपेण हुं फट ठः ठः ॥ उन्मक्ष रुद्र मंत्र जपन् त्रिलक्ष प्रजाप्प सिद्धममुं, धत्तूर रस समिद्धि जुहुयात् चितिकाऽनलैः भ्रमये मंत्र दो तीन लाख जप से हिल् इस उन्नत की अग्रि में शत्रु को भ्रम करने के लिए होम करे। ॥ ९९ ॥ के रस की समिधाओं में से चित्ता मंत्र जपन्न मुं यद्याव च्चेहेमगैरिक प्रतिमायाः, अंगारे लिखिन्या सद्यो हीयेत विद्विष स्तत्र ॥ १०० ॥ इस मंत्र को जप करते हुए जब तक सोने या गेरु की प्रतिमा नष्ट हो जाती है तब तक शत्रु भी नष्ट हो जाता है। हकार बिंदु संयुक्तं षट्कोणाभ्यंतरे लिखेत् तत्क्षेप्यं चक्र चक्राद्याः सच भ्रमति काकवत् ॥ १०१ ॥ बिन्दु सहित हकार को एक छ कोण वाले यंत्र में लिखकर कुम्हार के चाक पर डालने से शत्रु कौए की तरह घूमता रहे। ॐ नमो भगवते महाकालाय दह दह पच पच भंजय भंजय उत्सारय उत्सारय स्तंभय स्तंभय मोहय मोहय उन्मादय उन्मादद्य एवं रूद्राज्ञापयति ॥ अथ शवरि महा महिम वंतौ स्मरति रव रख हुं फट ठः ठः ॥ गोमय चत्वर मृद्भू प्रति रूपं ग्राम स्वैट नगराद्ये, कृत्वा मध्ये बूल्यां न्यस्य ततः कणा तुषैः कुर्यात् OSPPS ॥ १०२ ॥ 150695७८५P58959595959sex
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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