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________________ SAS1015122152510151215 विधानुशासन ISIO15181510150SOTI मंत्रो हु सुचि रीत्येष गर्भणयाव्य विदर्भितः, मल्ल के लिरिवतः कुर्यात् प्रशवे गर्भ रोधनं ॥ १२॥ गर्भणी के नाम को 'हुसुचिरी' इस मंत्र के साथ विदर्भित करके अर्थात् गूंथकर मल्लक (मल्लिका मीतिया- मोगरा) लालटेन या नारयली के छोड़े के बने हुए प्याले पर लिखने से गर्भ रुक जाता है। लांगलि हस्त ताराभे गर्भिणी चाम्रि रोपिसा, तावत् सं स्तंभरोद्गगर्भ यावन्नो स्वन्यते ततः ॥१३॥ लांगली (कलिहारी) को हस्त नक्षत्र में लाकर गर्भिणी के घर में गाइने से उसका गर्भ तब तक रुका रहता है जब तक उसका निकाला नहीं जाता है। सिद्धार्थ तैल संयुक्तं महिष महा शकुन पाशोत्पुष्पं, या पिबति गर्भिणी सा जात्यंधमपत्यमाप्रोति ॥९४॥ सिद्धार्थ (सफेद सरसों) तिल का तेल महिषि (भैंस का दूध) महाशकुन ( ) माष (उड़द) यूष (घुली हुई दाल १ भाग पानी १८ भाग डालकर औटाकर शेष चौथा भाग रहने पर छना हुआ पानी को यूष कहते हैं) इनको जो स्त्री पीती है उसके जन्म से अंधी संतान होती है। ऋतौ पुष्पं च शाल्मल्या: पलाशशतपत्रयोः, बीजानि च निपीतानि नारी वंध्यां वितन्वते ॥९५॥ ऋतुकाल में सेमर (शाल्मली) के फूल पिलाश (दाक) के बीज और शतपत्र (सतावरी) के बीजों को जो स्त्री पीती है वह वंध्या हो जाती है। करवीरस्य बीजानि नवनीतयुतानिया, रजश्वलाभि हत्प्रष्टवा सा वंध्या भवति ध्रुवं ॥१६॥ जो रजस्वला स्त्री कनेर के बीजों को पीसकर मक्खन के साथ खाती है वह निश्चय से वंध्या हो जाती है। यम विद्या ॐ काल दष्ट्रं भयं करि दर दर मई मई संहर संहर हफट ठः ठः।। अंगानि धाम विद्यां लक्ष जपात् सिद्धामेना जपननि रिपो विध्यत्, प्रतिमाया नूतन चिता मन्मयाः स्वांऽधि रेणुरेणु सिक्तायाः ॥९७ ।। SHRISTOTRICISIOISODSRISI७८४PISTOISTRISTRISDISEDICTION
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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