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________________ 252525252595 dengenera Y52525252525 पुष्पोन्मूलितमुन्मत्त मूलं धार्यं कटि तटे, प्रभवेत्प्रतिवद्धं तद्योषितां गर्भ संग्रहं ॥ ८५ ॥ ऋतुकाल के समय उन्मत्त (धतूरे) की जड़ को कमर में बांधने से स्त्री को गर्भ नहीं रहता है। आखुकर्णी शिखा सौम्यापिष्टा ज्येष्टांबुना, भगे घृता व गार्भ समद्भिः पिष्टातु नान्यथा ॥ ८६ ॥ आशु करणी (मूषाकर्णी) सोम्य (गूलर) को ज्येष्टा ( ) के पानी (रस) से पीसकर योनि में रखने से गर्भ नही रहता है। सुर गोप रजो नीरें केवलं शश लोहिती, क्षीरं वा शाल्मली पुष्पं पिवती गर्भ मधु पिष्ट पलाशास्थि कृत लेप ध्वजः पुमान यां. गच्छेदार्त्तये नारी तस्या गर्भो न जायते पलाश (ढ़ाक) की लकड़ी को पीसकर मधु में पिलाकर लिंग पर लेप करके पास ऋतुकाल में जाता है उसको गर्भ नहीं रहता है। गुड़ च देव काष्टं तिलोत्थं च खरां भसा, शू पुष्पाणि वा स्वाय पिवेद् गर्भ निवृत्तये 9 || 22 || पुरुष यदि स्त्री के ॥ ८९ ॥ गुड़ देव काष्ट (देवदास) तिलों की खल को गधे के मूत्र में पीसकर अथवा सूर्य्या (आक) के फूलों को खारी नमक के साथ गर्भ को रोकने के लिए पीवे । पिचुमंदध्दोद्भूतो धूपो मन्मथ मंदिरे, ऋतौ प्रदत्त कुरुते गर्भानुपत्पादनं स्त्रियः ॥ ९० ॥ पिंचुमद (नीम के पत्तों की धूप को ऋतुकाल के समय योनि में देने से स्त्री को गर्भ नहीं रहता है । ऋतौ तलं च राजीवं शंख चूर्णं च योषिता, पीता निरुद्यते गर्भ ध्वंसयति च तद् ऋतु ॥ ९९ ॥ ऋतुकाल में तल (ताइवृक्ष) राजीव (कमल) शंख के चूर्ण को पीने वाली स्त्री के गर्भ नहीं रहता है और ऋतु धर्म को भी नष्ट करता है अर्थात् ऋतु धर्म नहीं होता है। 9525 595७८३ P5951975 PPSPA
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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