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विधानुशासन 9590595959595
ऋतुकाल के समय जपा प्रनून (कुड़हल के फूल) कांजि के साथ पीसकर पीने से गर्भ नहीं रहता है और न ऋतु धर्म ही होता है।
गैरिकं क्रिमिजित कृष्णा सम भागान् पिवेत् ऋतौ इंद्र वल्ली स मिरिचा यद्वा गर्भोन जायते
॥ ७९ ॥
गैरिक (गेरु) क्रिमिजित (बाय विडंग) और कृष्णा (काली मिरच) को बराबर लेकर ऋतु के समय पीने अथया इंद्रवल्ली (इंद्रायण) काली मिरच को भी पीने से गर्भ नहीं रहता है।
चूर्ण सिद्धार्थ तैलानि पीताऋतु वासरे, निरुद्धति स्त्रिया गर्भ ध्वसंयति च तद् ऋतुं
॥ ८० ॥
सफेद सरसों का चूर्ण और तेल को ऋतु के दिनों में पीने से स्त्री का ऋतु धर्म बंद हो जाता है ।
सोहि वासा छदजः सम तिक्त रस रामठः, गर्भ निपातयेत्पीतः काथो वाश्री रसोनयो
॥ ८१ ॥
यासा (अरहूसा) के पत्तो (छदज) का रस के साथ तिक्त (कड़वी पितपापडा-कुटकी) रामत (हींग) को पीयें अथवा श्री रसं (सरल का गोंद बरेजा) और रसोन (लहसुन) के क्वाथ को पीने से गर्भ गिर जाता है।
ऋतौ दिने दिने खादेत पुंसयोग विवर्जिता, गुडपलोम्मितं प्रश्नं नस्यात् प्रजनआमृति
॥ ८२ ॥
यदि ऋतुकाल में पुरुष से न मिलती हुई स्त्री चार तोले ( पल भर ) गुड़ को प्रतिदिन खाये तो उसे जन्म भर संतान नहीं होवे ।
पलाश बीज चूर्णेन मध्वाज्य रहितेन था,
गुह्यं लिंपेद ऋतौ तस्या न स्याद् गर्भ समुद्भवः
॥ ८३ ॥
ऋतुकाल में पलाश के बीजों के चूर्ण को शहद और घी से अपनी योनि में लेप करती है उसके गर्भ नही रहता है।
वर्त्ते लवण खंड या त्यंते तैल संयुतं, गर्भाशये मुखो गर्भन दद्यात् सा कदाचनः
॥ ८४ ॥
जो नमक के टुकड़े को तेल के साथ चोपड़कर रति के अन्त में गर्भाशय के मुख में रखती है उसके कभी भी गर्भ नहीं रहता है।
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