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SSCISIOS5I0505125 विधानुशासन 5051015015ICISOTES
इस मंत्र से अभिमंत्रित करके दोनों रुद्ध असृक ( ) वक्र (तगर) कूठ उषीर (खस) और प्रयंग का लेप करने से खुजली का विकार जीता जाता है, ना होता है।
नस्या रुष्कर बीज तल सहितान् सिद्धार्थकाना वते,
कृष्णैस्तंतुभिरानने फणि भृतःप्रेतालयानौ दहेत ॥५९॥ अरुस्कर (भिलाये) के बीज के तेल सहित सफेद सरसों को काले धागे में लपेट कर तथा सर्प के मुख में रखकर चित्ता को अग्नि से जलावे।
गंजा रोभ युतैर्विचूर्ण निहितै र्ता भयेते दिषां, गात्रै गैष्म शरद्वसंत तपन प्रौदातपे स्वेदिनिः
॥६०॥ फिर उसमें गुंजा (चिरमी) और बाल मिलाकर उसके चूर्ण को शत्रु के ऊपर डालने से उसके शरीर में ग्रीष्म शरद और बसंत ऋतु के भी सूर्य की गरमी से पसीने बहाने वाली लूता (खाज) होती
श्यामाजाक्षीर रुनाभी कर्णिकारक्त केसरैः, उद्वर्तनं शिता निंब सेवा चास्याः प्रतिक्रिया
॥६१॥ काली बकरी के दूध रुक (कूठ) नाभी (कस्तूरी) कर्णिका रक्त (मध्यमा अंगुली का रक्त ) केसर का लेप तथा शक्कर और नीम के खाने से इसकी थिकित्सा होती है।
कदली तुरंगं सितसर करवीर जटा च विल्व मज्जा, च दत्तान्यान्नेन समं शत्रो:कुर्यति सपदि वमिं
॥ २॥ कदली (केला) तरंग (असगंध) सितसर (सफे द सरकंड़ा) कनेर की जड़ और देल के गूदे को अन्न के बराबर लेकर शत्रु को देने से शत्रु को तुरन्त ही वमन होने लगती है।
अर्क बीजैः स्नूहीक्षीर भावितै गुंड मिश्रितः, वितीणैरन्न पानादौ रक्तातिसार रुग्भवेत्
॥ ६३॥ स्तूही (यूहर) के दूध में भावना दिये हुए आक के बीजों को गुड़ में मिलाकर खाने पीने आदि में देने से खून के दस्त आने लगते हैं।
गोमूत्र पिष्ट वाक्यायु शक लिप्त शराबयोः, शकृन्निधियते यस्य विद्रोद्य स्तस्य जायते
SIDDRISTOTRICISIOS5I05[७७९ PERSIOTECTEDISCISCESS