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________________ S5050510505125 विद्यानुशासन VS05051205051255 ककला शालि भंगना गात्र चूर्णी विलेपनात. स्टात् कुष्टो विद्विषां गात्रे कंहुतो दशमान्वितां भल्लातक रसै गौलि गुंजा मंडल कारिकान, तच्चूर्णा अंगेषु कीर्णः स्यात सप्ता हा न कुष्ट दो रिपौ ॥५३॥ भिलावे के रस में बनाई हुई गोली गुंजा (चिरमी) और मंडलकारिका (कुत्ते की भिष्टा) के चूर्ण को शत्रु के शरीर पर डालने से शत्रु के सात दिन में कुष्ट हो जाता है। निंब शर्करयोः पानात् मुहू यूषेण भोजनात्, निशा सैंधव मूत्राणां लेपाच्च स विनश्यति यह कुष्ट नीम और शकर के खाने से तथा मूंग का यूष (मूंग की दाल धुली हुई १ भाग जल १८भाग औटा कर चौथाया जल रहने पर छानकर पीना) के भोजन और हल्दो सेंधा नमक तथा मूत्र के लेप से नष्ट हो जाता है। पंका लिप्ताहि वस्था सिद्धा वदनानले, पक्ता शय्या तले क्षिप्तत्वा स्फोटं दधति विद्विषां सर्प के मुँह में रखी हुई सफेद सरसों वदर (बेर) और अनल (भिलावे के बीज) पकाकर तथा कीचड़ में लपेट कर शत्रु के बिस्तर के नीचे रख्नने से शत्रुओं के फोड़े निकल आते हैं। रजनी रजनी सप्त मध्या मध्या सिताश हो. कंडु मुत्पादोत्सद्यो लिप्ता वपुषि विद्विषः ॥५६॥ सर्प के मुँह में सात दिन रात रखी हुई हल्दी को शत्रु के शरीर में लेप करने से खाज पैदा हो जाती गुंजा विषानि भालातक कपि कच्छ रजोप्ति, सिष्यात स्वं गेषु लूता कृत शत्रोः काले खरा तपे |५७॥ गुंजा (चोटली) विष (अतसि वत्सनाभ)अनि (केसर) भिलावे कपि कच्छ (कांच की फली की रज) को तेज अनि में भूनकर शत्रु के शरीर में लेप करने से बड़ी भारी लूता (याज) पैदा होती है। ॐनमो भगवते उद्दाम रेश्वराय कुंभ कुंभी स्वाहा।। हरेदंद्रदम सग्वक्र कष्टो शीर प्रियंगभिः, लूता विकार जिल्लेपो मंत्रेणानेन मंत्रितैः ॥ ५८॥ COISOISSEDICISEASOKSI ७७८ PSIODOISTRISIOISSION
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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