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________________ 500505105015015 विधानुशासन 9505055055 अभ्यक्त नेत्र युग्मस्य वसयो भेक जन्मना, नरस्य प्रतिभासंते वेणुवो भुजगा इव ॥४५॥ मेंढ़क की चर्बी को दोनों आंखो में लगाने से पुरुष को बांस सर्प के समान दिखलाई देते हैं। सिक्ता सरह तैलेन रू हन परिषिम, कुरुते ज्वालिता वेणुष्वनिला साधियं निशि ॥४६॥ बत्ती को ऐरंड़ के तेल में और सर्प की यी से भिगोकर बांसों में रात्रि के समय जलाने से साँप ही साँप दिखलाई देते हैं। दशा सर्प यसा सिक्ता ज्यालिता कुरुते रहे, कृताखेतार्क मूलेन वंश दंडानऽहिनि य ॥४७॥ सफे द आक की रुई की बत्ती को सर्प की चर्बी में भिगोकर घर में जलाने से बांस के दंड सर्प के समान दिखलाई देते हैं। अहि त्यग् गर्भया वया वत्तिता दीपिका निशि, येणवायेषु ग्रहांगेषु सप्पं वा मोहमावहे त् ॥४८॥ सर्प की खाल की बत्ती को रात्रि के समय दीपक में जलाने से घर के आंगन के बांस आदि सर्प का ही घोखा देते हैं। सुरगोप कलरव शकत गर्भा वातादि तैल संसित्ता, निशि वंशादि गृहां गेष्यहि वुद्धिं दीपिका जनयेत् ॥४९॥ सुरगोप (इंद्रगोप = वीरवहूटी) कलरव (कबूतर = मुरगी) की बीट के तेल में भीगी हुई बत्ती को दीपक में रात्रि के समय जलाने से घर के आंगन के बांस आदि में सर्प का भ्रम होता है। कायानितिवर्तिना धूपानां च क्रिया, गृह प्रयातो रक्षेद् गव्यं नसि यतं पतं ॥५०॥ कार्य होने पर बत्तियों के बुझ जाने पर घर में धूप देने और गाय के घृत की नस्य लेने से रक्षा होती ॥५१॥ सप्ताहं गृह गोधायाः फणिनो वा मुरवेपिंता, गुंजा कुष्टाय भुक्तास्यान्तारंभस्तत् प्रतिक्रिया 05051215DISTRIC5215७७७PISTOISOTERASICISCISCIEN
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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