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________________ 85015015015015015 विधानुशासन 28501510050SOISCIEN जिसके पास गोमूत्र में पीसे हुए याययायु ( ) को दो सिकोरे में लेप करकेरखा जाता है उसका विष्टा रुक जाता है। तरुदेव कुलायासवाग्गुदा मल लेपितः, मल्ल द्वये रुद्ध मलः स्यादर्द्ध मारुतः ॥६५॥ देवत: (देवदारु) कुलायास (गुल्माष) कांजी और यागुदा (जिहवा का मल) खकार को मिलाकर लेप करने से तथा वायु को ऊपर को रोक देने से विष्टा रुक जाता है। कुर्यात् छदरा भस्त्रा स्त्रि पुरोष प्रधरिता कंपितं, त्रि पिवेद्वा स्या तस्या मल निरोधनं ॥६६॥ ॐ सप्त मातृके द्वारं स्तभय स्तंभय तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः॥ सहस्त्र जप सिद्धेन वानरा स्थयाभि मंत्रितं, मूत्र भुवम मुना स्थ मूत्रं स्तंभयति द्विषं ॥६७॥ इस मंत्र को एक हजार जप से सिद्ध करके बंदर की हड्डी को अभिमंत्रित करके शत्रु के मूत्र करने के स्थान में गाढ़ देने से उसका मूत्र रुक जाता है। नारीणां मूत्र भूपंको वन मूषिक चर्मणा, वेष्टितो निहितः कुर्यात् चिरं मूत्र निरोधनं ॥६८॥ स्त्रियों के मूत्र की गीली मिट्टी को जंगली चूहे के चमड़े में भरकर रखने से उनका मूत्र चिरकाल तक रुक जाता है। शत्रो स्तेन्मूत्र भूपंके सप्पास्य मिसितैः सितं, मूत्रैमूत्र निरोधाय विमुक्तं तु विमुक्तय ||६९॥ शत्रु के मूत्र की मिट्टी कि कीचड़ को सर्प के मुँह में रखने से मूत्र बंद हो जाता है और हटा लेने पर खुल जाता है। अस्त्रजा ककलासस्य यत मूत्रं कृत सेवनं, तदऋतु स्नातया ना या लिंपितं प्रदर प्रदं ॥७०॥ ।।७१ ॥ सूत्रं यदा सृजा सिक्त महेवा हुंहुभस्य वा, तदुलयित मात्रं स्थात्महा रुधिरकारणां CHECISIOTICISIOTICISIS ७८0 PREDISTORICHEICTIODICIES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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