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________________ CRICTORISTORICISIS विधानुETE PRECIATEISITORISOIN अभिमंत्रितमेतेन वितेरद्विक्षमौषधं, मंत्री विश्वेषु रोगेषु वांछन्नातुर रक्षणं ॥१७२॥ इस मंत्र का अड़तालीस दिन तक प्रतिदिन संध्या के समय तीन हजार जप करके सिद्ध करने से यह सब रोगों को नष्ट करता है। मंत्री इस मंत्र से अभिमंत्रित की हुई सब औषधियों को (सोंठ को) देये तो यह मंत्र सभी रोगों से दुखी पुरुष की रक्षा करता है। सहस्त्र रश्मिरादित्योऽग्रिभूः स्वाहेति असौ मनुः सहस्र त्रय जाप्पेन सं सिद्धिमुपगच्छति ॥ १७३॥ एक पत्रे विलिरियतः कंठे बद्धोमि रक्षति गाः, सर्वेभ्यो पिरोगेभ्यो मारिभ्यश्चोतर तो पिच ॥१७४॥ ॐसहश्र रश्मि आदित्यऽनि भूः स्वाहा ॥ यह मंत्र तीन हजार जप से सिद्ध होता है। इस मंत्र को अथवा सूर्य लिखकर या उसके बाहर अग्नि मंडल और पृथ्वी मंडल लिय्यकर) एक पत्ते पर लिखकर गाय के गले में बांधने से यह सब रोगों बीमारी और अन्य कष्टों से रक्षा करता है। वामाष्ट मात परिपालयति ठः ठः त्येष मातृका मंत्रः, त्रि सहस्त्र रुप जाप्पान्मंत्र विदां सिद्धिमुपयाति यह मतृका मंत्र तीन हजार जप से मंत्रियों को सिद्ध होता है। ॥१७५ ॥ कार स्कर मठ घंटोदर लिरियतो मंत्र एष गो कंठ, बद्धो उधीते रज्वा गोमारि भीति मपहरति ॥१७६ ॥ इस मंत्र को कारस्कर ( ) वृक्ष के घंटी में लिखकर गाय के कंठ में रस्सी से बांधने से यह गायों के सब प्राकार के भयों से रक्षा करता है। ॐनमो भगवते वज़ हुंकार दर्शनाय चुल चुलु मिलि मिलि मेलि मेलि सेलि सेलि गोमारि वज़ हुं फट अस्मिन् ग्रामे गोकुलस्ट रक्षां कुरु कुरु ठः ठः।। सहस्र जप सिद्धोयं रोट्रो विलिरिवतो मनुः, पत्रादौ गोले बद्धस्तां मा पदम्योऽभि रक्षति SSIOTSIRSRISESSIODOS७६७PIRICISTORSCIRCISIOISISTER ॥१७७॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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