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________________ 9595959595951 विधानुशासन 959595951 एक हजार जप से सिद्ध किया हुआ यह मंत्र एक पत्ते पर लिखकर गाय के गले में बांधने से यह उनकी आपदाओं से रक्षा करता है। समूल पल्लवा तिक्ता लांबुर्वद्धवा गले गवां, अचिरेणैव कालेन हन्यात्सकल मामयं ॥ १७८ ॥ जड़ और पत्तों सहित तिक्त (कड़वी) तूंबी को गाय के गले में बांधने से यह थोड़े ही समय में सब रोगों को नष्ट कर देती है। गजस्य मूत्रं पीतं वा सिक्तं वा नाशयेदगवां, उपसर्ग समरकं गोष्ट स्थापितमस्थि वा ॥ १७९ ॥ हाथी के मूत्र को पीने से अथवा उसमें भिगोये जाने से अथवा उसकी हड्डी को बांधने से वह गायों की सब उपसर्गों से रक्ष करता I मार्ग मांरसी पुरो शीर नृपराज घृतः कृतः धूपः, सगोमेोगष्टे सुरभीणां ज्वरं हरेत् ॥ १८० ॥ मार्ग (चिड़चिटा ) मांसी (जटामांसी) पुरा (गूगल) उशीर (खस) नृपराज (ऊषभक) सफेद सरसों घी और गोबर से की हुई धूप गायों के समूह में गायों के ज्वर को दूर करती है। इति विनिक्षितानयान् दोष जातंक भेदान्, प्रति विविधि चिकित्सां तां विजानन् नरेंद्र: स्वस्त्वम परमपि रक्षेदामयोपद्रवेभ्य त्रिभुवन महनीयं सास्वतं याति सौरां ॥ १८२ ॥ इस प्रकार कहे हुए दोषों से उत्पन्न होनेवाले रोगों की अनेक प्रकार की चिकित्सा को जानता हुआ उत्तम पुरुष अपनी और दूसरो की रोगों से और रोगों के उपद्रवों से रक्षा करता हुआ लोक में कीर्ति को पाकर अनन्त सुख को पाता है । इति SPPS ॥ १८१ ॥ ९७६८Po 5959595
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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