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CCTOISSERI501525 विधानुशासन VSIST585DISCIRCISI
हंतो विपादिं कटत्वगत्व क्यत्र सारं संयते, सज्ज माहिष तकोत्थ लेपादा तप तापिते
॥१६५॥ कटुक (कुड़ा) की छाल और पत्ते नमक सहित सज्जी और भैंस के मद्धे का लेप करके आग से सेंकने से पैरों का कोढ़ ठीक होता है।
आलु दल कल्क भसितं माहिषं नवनीतमामनियासः,
तुंबी फल निहितै स्तै लैंपो यदाधिकां हति ॥१६६।। अरलु के पत्तों का कल्क में मिलाये हुए भैंस के मक्खन और आम के गोंद को तुंबी में रखकर लेप करने से पैरों का कोढ़ दूर होता है।
मूलेन स्व रसेन च पुष्प लताया विपाचितं तैलं,
आलिप्त पत तलयो धिपधिकां प्रशमोत् चिरात् ॥१६७।। पुष्पलता की जड़ और उसके स्वरस में पकाये हुए तेल को पाँच के तलवों पर लेप करने से विपादिका शांत होती है।
नस्यं सैंधव यष्टयाऽष्ट व्याधी फल रसैःकृतं, प्रागेवनिद्रा मुद्रिक्तामप्य या कर्तुनीश्वरा
॥ १६८॥ . सैंधा नमक मुलहटी से आठ गुने व्याधी (कटेली छोटी) के फल के रस से सिद्ध किया हुआ नस्य प्रातः की निद्रा को दूर करता है।
मरिचेन तुरंगस्य लालया मक्षिकेन च, स्याद्वर्तनं नेत्रयो निद्रोक्त भंजन मंजन
॥१६९॥ काली मिरच और घोड़े की लार और शहद का आंखों में अंजन लगाने से नींद दूर हो जाती है।
शिफां वायस जंयायाः शिर साधारटोन्नरः, प्रनष्ट निद्रोय स्तस्य भवे निद्रागमः क्षणात
॥ १७०॥ यदि कोई पुरुष काक जंघा की जड़ को सिर पर रख लेवे तो उचटी हुई निंद्रा तुरन्त आ जाती है।
ॐहां क्लीं हुं क्लीं हां हुं क्लीं क्लीं क्लां ठः ठः॥
अष्ट चत्वारिंश दिनानि संध्या सु नित्यमषेमनुः, सिद्धस्त्रि सहस्त्र जपादिना भवेत् सर्व रोग हरे:
॥ १७१॥