________________
959MPSP595951 विधानुशासन 959595959
कल्काक्तेशीषितोदर कुंभी तर्क, द्वि पक्ष मुषितं गृहणीहत नाम पांडू रोगापहरं
॥ १५९ ॥
ग्रंथिक (पूपलामूल) शिफा (जड़ पीपल की) कणा (पीपल) नि (चित्रक) कृमिरिपु (बायविडंग) के कल्क को एक घड़े में मट्टे के साथ तो पक्ष तक रखकर सुखाकर सेवन करने से गृहणी और पांडुरोग नष्ट होता है।
ताक्ष्यं द्विनिशातिक्ष्णा श्वेता ज्योतिष्मतिररिष्ट, दलं मंजिष्टां वा लिपेंद भंगदरे मूत्र पिष्टानि
॥ १६० ॥
तार्क्ष्य (रसोत) हिनिशा (दोनों हल्दी और दारु हल्दी) तीक्ष्णा (वच) श्वेता (सफेद दोब) ज्योतिष्मति (मालकांगनी) रिष्ट दल (अरीठे के पत्ते) मंजीठ को मूत्र में पीसकर भंगदर में लेप करे ।
क्षीरं कुरूं ठोरा स्फोतादर्क ध्वान स्वरं घृगं, पूतिधायं वृणं हंति लेपनादथवा भया
॥ १६१ ॥
क्षरि (दूध) कुरु (कटेली) ठोरा (ठोल समुद्रवृक्ष) स्फोता (अनंत मूल) अर्क (आक) ध्यान स्वरं (कौवे के शब्द) को रखने अथवा हरड़े का लेप घाव को पूर्णतया भर देता है।
ही गजार्क पय: सिक्थ स्तैल सैंधव लेपनात्, सोहे सहश्रधाभिन्नमपि पाद तलं क्षणात्
॥ १६२ ॥
खुही ( थूहर ) गज (राजपीपल) आक का दूध सिक्थ (मोम) तेल सेंधा नमक के लेप से हजार प्रकार से फटा हुआ पाँव उसी क्षण ठीक हो जाता है।
विषादि भूज्जरं बुष्कं केतकी दल भस्मना, चूर्णाज्य पटु युक्तेन कंस पृष्टेन लेपनं
॥ १६३ ॥
केतकी के पत्तों की राख कस माक्षिक में घिसे हुए घृत सहित पटु (पटोल लता) के चूर्ण के लेप से विपादिका (पैरों के कोढ़) को लाभ होता है।
पटुतिक्ताम्र निर्यास नुगाक्क जं पयो युतं, विपादिकाम लांबुत्थं माहिषं हंति तक्रजं
॥ १६४ ॥
पटु (पटोल लता) तिक्ताम्र (खट्टा आम) का निर्यास (रस या गोंद) सुगाक पय (चोहर और आक का दूध) और तुंबी में रखा हुआ भैंस की छाछ विपादिका (पैरों के कोढ़) से उत्पन्न हुए कष्ट को दूर करता है ।
OFOFOFO
2595