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S5DISTRISTICIST01525 विद्यानुशासन POTOISSIST205052559
धात्र्यास्थि तंदुल जलैः पीतं हन्या सृग्दरं, पीतां सिताबुना पिष्टा धात्री वा सग्दरं पिबेत्
॥१५३ ।। आंवले की बीजों को चावलों के पानी के साथ पीने से अथवा आंवलों को पीसकर ठण्डे जल के साथ पीने से भी अस्टग्दर (प्रदर) रोग नष्ट होता है। (अस्ट-रक्त)
मूत्र कच्छ हरेत् पीता क्षीरेण शबरी शिफा, अजा क्षीरेण सं पिष्टा पीता नीली जटाथवा
॥ १५४॥ अथवा नीली जटा को बकरी के दूध से पीसकर पीने से अथवा शवरी जटा [ (शर्वरी = हल्दी) (शावर = लोंग) (शावरी = कोंच की फली) 1 को पीसकर पीने से भी मूत्र कृच्छ नष्ट होता है।
काथो वर्ण मूलस्य तत्कल्केन समन्वितः, पीतोनिपातयेत्सद्यःशर्करामस्मरीमपि
॥१५५ ।। वर्णमूल (केसर की जड़) के क्वाथ उसके कल्क के साथ पीने से वह पथरी (पथर की शकरी) को तुरन्त निकालकर गिरा देती है।
लिप्तं साज्यं वरा भरम लिंग लति विनाशनं, करवीरस्य मूलं वा लिप्त प्रभाज्ोन कल्कितं
॥१५६॥ वरा (पाठ) की भस्म को घृत के साथ लेप करने से लिंग की पूति (खुजली) मिटती है अथवा कनेर की जड़ के कल्क को घृत के साथ लेप करने से भी खुजली मिटती है।
काप्पासस्यास्थिनिः पिष्टे साधितं तिल संभवं,
लिंग लूति विकाराणां प्रतिकारो विलेपनात् ॥१५७॥ कपास के विनोले की मीजी को तिल के तेल में पीसकर लेप करने से लिंग की लूति (खाज) का विकार नष्ट होता है।
यक्ष , शमी इंद्र वल्लि पटुं च तक्रेण वारिभिर्वोषणैः,
पिष्टवा पिवेद्धिनादौ वृद्धया मुष्कस्य बाधितो मनुजः ॥१५८ ।। यक्ष द्रुम (वड़) शमी (खेजड़ा) इंद्र वल्ली (इंद्रायण) पटुं (परवल) को मढे या गरम जल से पीसकर प्रातःकाल के समय पीने से अंडकोषकी वृद्धि और मुष्क रोग से पीड़ित मनुष्य पीवे।
ग्रंथिक शिफा कणनि कमि रिपु ලගලගeo s68 ටටගත්