SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 769
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ STRICISIOSISTSTOISIOS विधानुशासन ASIRIDIOSRIDICINESS ॐ बष्टिं लि ठः ठः॥ मंत्रो हव्याशस्यायं त्रिलक्ष जप साधितः, अपानो पान मुद्राभ्यां छर्दितीसार हृद्भवेत ||१४७॥ इस हव्यासन मंत्र को अपान और उपान मुद्रा से तीन लाख जप कर सिद्ध करने से यह वमन और अतिसार को दूर करता है। चिंचा बीज त्वचा विश्वं दीप्पकं सैंधवं च, यः पिबेत् तक्रेण पिष्टानि सोतीसारं जयेत् क्षणात् ॥१४८॥ जो पुरुष इमली के बीज दालचीनी सोंठ दीप्पक (अजवाइन) और सेधे नमक को पीसकर मढे के साथ पीता है वह अतिसार को क्षणमात्र में जीत लेता है। आम्रातक रसे पक्कं पूराणैः शालि तंदुलैः, उदनं सेवितं प्रातः सर्वातिसान नाशनं ॥१४९॥ आम्रातक (अंबोड़) के पार पकाये हुदो दरले सामान की भरजरे प्रातःकाल के समय खाने से दस्त (अतिसार) बंद हो जाते हैं। विश्व कृष्ण कवोष्णेन कल्किते वारिणा पिबेत्, विशुचि कांतः कुर्यात् वा नश्यं भंगदलांबुना ॥१५० ॥ विश्व (सोंठ) कृष्ण (काली मिरच) के कल्क को थोड़ा गरम पानी के साथ पीने से अथवा भंग (अंगराज भांगरा) के पत्तों के रस का नस्य लेने से विशूचिका नष्ट हो जाती है। तंदुलोदक पिष्टेन ताल मूलेन लेपनं, नाभौ प्रकल्पितं सदो निरसेत विशूचिकां ||१५१॥ तंदुलोदक (चावलों के पानी) में पिसी हुयी ताड़ की जड़ का नाभि में लेप करने से विभूचिका तुरन्त नष्ट हो जाती है। ॐ चले चल चित्ते चपले चपल चित्तेः रेतः स्तंभा स्तंभा ठः ठः॥ सिद्धेय त्रिसहस्त्र जपात् मंत्रोऽयं तेन शर्कराः, सप्त जप्त्वा श्रीरांतस्था योनि स्थां कंधते प्रदरं ॥१५२ ।। यह मंत्र तीन हजार जप करने से सिद्ध होता है । इस मंत्र से शक्कर की ७ कंकरियों को सात बार जपकर अभिमंत्रित करके योनि में रखने से प्रदर रुक जाता है। OISTRI5DISEASPI525105७६३/510STDISTD35125055075
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy