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51015RISTOTRIOSIO5 विधानुशासन VIDIST525CSCIEN
दुर्गा मंत्रश्चायं ग्रंथ्यादि हरेत् सहस्त्र जप सिद्धं आबद्धं तज्जत हस्तेऽपमार्ग मूलं च
||८२|| यह दुर्गा मंत्र एक हजार जप से सिद्ध होता है। इस मंत्र से चिट चिटे की जड़ को अभिमंत्रित करके हाथ में बांधने से गांठ आदि दूर होती है।
हरीतकी शिगु करंज भास्वत पुनर्नवा सैंधवमश्च मूत्रैःपिष्टै:,प्रशस्तैः पिटिकाः सुलेपो ग्रंथ्या व पच्या माप विद्रुतौ च
।।८३॥ हरीत की (हरड़े) शियु (सहजना) करंज भास्वत (आक) पुनर्नवा (साठी) सैंधव नमक को घोड़े के मूत्र में पीसकर पिटिका (मसरिका) पर लेप करने से न पकने वाली गांठ को भी शीघ्र ही गला देती है।
लाक्षा त नप भूरुह रजनि रजो मिश्च वसन,
सकल कृता वर्ति वणेषु दत्ता शोधन रोपण परा भवति ।। ८४ ॥ लाख घृत नृप ( ) भूरुह (पेड़) रजनि (हल्दी) के चूर्ण को मिलाकर बनाई हुयी कपड़े की बत्ती को घाव पर रखने से.उसका कष्ट दूर होता है तथा घाव को शोधन और भर देती है।
निगुड़ी पत्र रसे लांगलिका कल्क संयुते सिद्ध,
तैलं हन्यादाश गल गंड गंड़ मालां च ॥८५॥ निर्गुडी (संभालू) के पत्तों का रस में लांगली (कलिहारी) के कल्क को मिलाकर तेल सिद्ध करने से गलगंड और गंडमाला को शीघ्र ही नष्ट कर देता है।
दुर्वायाः स्वर मंजरयाः सोम राज्याश्च पल्लवैः, वयाति वंध्नां क्षुणैःवणे शोणित निस्ति
॥८६॥ दूब खर मंजरी (चिरचिटा) सोमराजी (बावची) के पत्तों को पीसकर बांधने से घाव से बहता हुआ रक्त तुरन्त ही बन्द हो जाता है।
तिल भल्लातक पथ्या चूर्णो गुड़ मिश्रितो जयेल्लीठः
कुष्टं शशिरेरवा वा सह कृष्णा शिलाष्टमुपयुक्ता ॥८७॥ तिल भिलावे हरड़े के चूर्ण में गुड़ मिलाकर चाटने से अथवा शशिरेखा (गिलोप) कृष्ण (कालीमिरच) शिला (मेनसिल) से कुष्ट रोग कोढ़ जीता जाता है। SSIOISTORSRISTRISTRIDESI ७५२DISTRIERSPECISTRIDICTET